लघुकथा : कछुआ और खरगोश


‘घमण्डी खरगोश’ विषय पर एक लघु कथा लिखिए।

किसी नदी में ‘मंदबुद्धि’ नामक एक कछुआ रहता था। एक दिन वह तट पर लेट कर धूप का आनन्द ले रहा था कि तभी एक खरगोश उसके पास आया। दोनों आपस में बातचीत करने लगे। बातों-बातों में दौड़ की बाजी लग गई। दौड़ लगाने के लिए अगले दिन सूर्योदय का समय निर्धारित किया गया। उन्हें दौड़ लगाकर गाँव के बाहर बने एक कुएँ तक पहुँचना था। अगले दिन निश्चित समय पर दौड़ आरम्भ हुई। खरगोश छलांगें लगाता हुआ तेज गति से आगे बढ़ गया और कछुआ अपनी धीमी गति से चलने लगा। कुछ ही देर के बाद खरगोश ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे कछुआ कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। उसने सोचा कि वह धीमी चाल से चलने वाला कछुआ उसका क्या मुकाबला करेगा, क्यों न वह थोड़ी देर घने पेड़ की छाया में विश्राम कर ले। यह सोचकर वह लेट गया और जल्दी ही गहरी नींद में चला गया।

मंदबुद्धि कछुआ निरन्तर चलता-चलता जब वहाँ पहुँचा तो उसने खरगोश को गहरी नींद में सोते हुए पाया। कछुआ उसे उसी स्थिति में छोड़कर आगे बढ़ गया। दोपहर बीतने पर खरगोश की आँख खुली तो वह घबराकर सरपट कुएँ की ओर दौड़ा। जब वह गाँव के बाहर निश्चित स्थान पर पहुँचा, तो उसने वहाँ कछुए को विश्राम करते हुए पाया। वह दौड़ हार चुका था। उससे थोड़ी दूरी पर एक लोमड़ी बैठी थी। खरगोश ने पूछा, “लोमड़ी मौसी! मैं कछुए से तेज दौड़ा फिर कैसे हार गया।” लोमड़ी ने उत्तर देते हुए कहा-खरगोश भाँजे! तुम्हारा घमण्ड तुम्हें ले डूबा। तुमने पहले आराम किया और बाद में काम के बारे में सोचा; जबकि मंदबुद्धि कछुआ निरंतर अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता गया। इसलिए वह दौड़ जीत गया।

सीख – हमें कभी घमण्ड नहीं करना चाहिए क्योंकि घमण्डी का सिर नीचा होता ही है।