कविता : दशानन पुनर्जन्म


हिंदी में कविता : दशानन पुनर्जन्म


महाबली रावण की अस्थियाँ

आग में धू-धू जल रही थीं

व्योम में चटखें- चटख कर

उल्कापात-सी गिर रही थीं

अचानक अप्रत्याशित घटित होने लगा

सर्वथा अद्भुत…….. बिलकुल विचित्र

वहाँ प्रकट होने लगा

उस घने वाष्प-वृत्त में

पुनः जन्म ले रहा था रावण

खून से लथपथ ….. बुरी तरह हाँफता

फिर भी अट्टहास करता रावण ।

रावण अपने पुष्पक विमान से

पुन: धरती पर अवतरित हो रहा था

युग भले ही गया था बदल

अटट्हास अब मुखरित हो रहा था

अब घर-घर में था उसका बसेरा

मुँह में राम….. तन पर रावण का चेहरा।

मरा हुआ रावण…..भस्म हुआ रावण

हमारे आपके मन में मुसकरा रहा था

आर्यावर्त के एक-एक चप्पे से

रोज़ एक सीता चुरा रहा था।


डॉ. रामबहादुर