संवाद लेखन : पिता और बच्चों के बीच अनुशासन को लेकर संवाद


पिता और बच्चों के बीच अनुशासन को लेकर संवाद


राहुल : देखो, राघव! तुमने बिना पूछे आदित्य के बस्ते में से पुस्तक ले ली। यह बहुत बुरी बात है।

राघव : इसमें क्या हो गया?

राहुल : यह बात गलत है-किसी की कोई वस्तु उससे पूछे बिना लेना ठीक नहीं। इसको अनुशासनहीनता कहते हैं।

निखिल : पापा! अनुशासनहीनता किसे कहते हैं?

राहुल : किसी नियंत्रण, आज्ञा और बंधन में रहना ही अनुशासन है। अनुशासन में रहने के लिए बुद्धि और विवेक की आवश्यकता है।

ऐश्वर्या : अनुशासन में रहने के बहुत लाभ होंगे?

राहुल : हाँ बेटी! अनुशासन हमारे जीवन को सार्थक और प्रगतिशील बनाता है। विद्यार्थी को संयम और नियम में रहना अनुशासन ही सिखाता है। जीवन को सफल बनाने में यह बहुत सहायक है।

राघव : क्या अनुशासन जीवन में चरित्र को उज्ज्वल बनाने में सहायक होता है?

राहुल : बिल्कुल, बेटे! चरित्र-निर्माण की नींव अनुशासन तो डालता ही है। मानसिक विकास भी इसी के द्वारा विद्यार्थी में ढलता है।