भाव पल्लवन : ‘करत-करत’ अभ्यास ते जड़मति होत सुजान’


‘करत-करत’ अभ्यास ते जड़मति होत सुजान’


पल्लवन : मानव जीवन में उन्नति के लिए जहाँ अनेक गुणों की आवश्यकता होती है, वहीं सतत अभ्यास भी नितांत आवश्यक है। सतत अभ्यास के बल पर अल्पज्ञ भी सुविज्ञ, मूर्ख भी पंडित तथा अकुशल भी कुशल बन सकता है। निरंतर अभ्यास एक विशेष प्रक्रिया है जिससे कठिन कार्य सरल हो जाता है तथा दुर्गम भी सुगम हो जाता है। आज संसार में विज्ञान ने जो अद्भुत सफलताएँ प्राप्त की हैं, उनके पीछे भी मानव का निरंतर अभ्यास और परिश्रम ही है। जिस प्रकार कुएँ से बार-बार पानी खींचने वाली कोमल रस्सी कठोर पत्थर पर भी अपना निशान डाल देती है, वैसे ही अभ्यास के बल पर असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।