निबंध लेखन : इक्कीसवीं सदी का भारत


इक्कीसवीं सदी का भारत


प्रस्तावना – हमारे देश भारत का एशिया में विशिष्ट स्थान है। जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में इसका दूसरा स्थान है। भारत को स्वतंत्र हुए पाँच दशक बीत चुके हैं, फिर भी हमारे राजनीतिक भाग्य-विधाता अनेक समस्याओं का समाधान नहीं कर पाए हैं। राजनीतिक व सांप्रदायिक कारणों ने देश को जर्जर करके रख दिया है। यहाँ के अधिकांश वासी अशिक्षित हैं, इसी कारण धर्मांधता और अंधविश्वास का पल्ला पकड़े हुए हैं। यह स्थिति समाज की प्रगति में बाधक है । पुरुषार्थ की महिमा को छोड़कर हम लोग अधिकतर भाग्यवाद का ही गुणगान करते हैं, इसलिए हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहते हैं। किंतु कई भावी पीढ़ी के लोग कर्म की महत्ता को समझकर अपने-अपने अविराम कर्म के आधार पर देश को प्रगति के शिखर पर पहुँचा देते हैं। अब देश इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुका है।

नवीन रूप – इक्कीसवीं सदी में भारत हर प्रकार से समृद्ध होगा। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याएँ दम तोड़ जाएँगी। सामाजिक बुराइयों में बाल-विवाह, बेमेल-विवाह, दहेज-प्रथा, छुआछूत, मादक वस्तुओं का प्रयोग, मदिरापान, द्यूतक्रीड़ा और भिक्षावृत्ति आदि का अंत हो जाएगा। भाईचारा पनपेगा और सहयोग की भावना बढ़ेगी ।

प्रत्येक भारतीय की मूल आवश्यकताएँ – प्रत्येक भारतीय की मूल आवश्यकताएँ रोटी, कपड़ा और मकान पूर्ण होंगी। हर वस्तु मिलावट-रहित, सही दामों में मिलेगी। खाद्यान्न व अन्य आवश्यक वस्तुओं की कमी नहीं रहेगी। उत्पादन में इतनी वृद्धि होगी कि हमें किसी के आगे हाथ फैलाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। कृषक शिक्षा के बल पर कृषि के लिए नए-नए उपकरणों का उपयोग करने में सक्षम होंगे। देश में कोई भूखा नहीं सोएगा। आदर्श गाँव देश का प्रतीक बन जाएँगे। वन महोत्सव मनाए जाएँगे। पर्यावरण पर विशेष बल दिया जाएगा। सर्वत्र स्वच्छता का बोलबाला होगा। अशिक्षा-अज्ञान के अंधकार का नाश हो जाएगा और सर्वत्र ज्ञान-विज्ञान का प्रकाश फैलेगा अणुशक्ति के माध्यम से विद्युत प्राप्त करके कृषि एवं उद्योगों में क्रांति लाई जाएगी। देश में गरीबी मिट जाएगी। कृषक व श्रमिक सुखी जीवन बिताएँगे।

कंप्यूटर व यंत्र-मानव – कंप्यूटर का प्रयोग हर व्यवसाय, तकनीकी संस्थान, प्रतिष्ठानों की गणना, समूह रूप में बड़े-बड़े उत्पादनों का लेखा-जोखा, भावी उत्पादन का अनुमान, यंत्रों की परीक्षा व भविष्य-गणना, परीक्षा-फलों की विस्तृत और विशाल गणना, वर्गीकरण, जोड़, घटा, गुणा, भाग, अंतरिक्ष यात्रा, मौसम संबंधी सही जानकारी तथा भविष्यवाणियाँ, खिलाड़ियों को प्रशिक्षण, शल्य चिकित्सा, मुद्रण और अन्य सभी क्षेत्रों में बढ़ जाएगा। विज्ञान और अधिक प्रगति कर जाएगा। चंद्रलोक में मानव रहने का स्थान बना लेगा। आवारा कुत्ते व पशु तथा भिखारी कहीं भी दिखाई नहीं पड़ेंगे। धार्मिक संकीर्णता और सांप्रदायिकता का अंत हो जाएगा।

बौद्धिक संस्कृति में परिवर्तन – बौद्धिक संस्कृति में परिवर्तन आ जाएगा। सत्साहित्य की माँग बढ़ेगी। अश्लील साहित्य कचरे के बर्तनों में दिखलाई पड़ेंगे। चलचित्रों की छवि उभरेगी। धार्मिक, ऐतिहासिक और सात्विक चलचित्रों का बोलबाला रहेगा। कला की ओर रुचि बढ़ेगी। लोग चरित्रवान् होंगे, सादा जीवन और उच्च विचारों को अपनाकर स्वस्थ रहेंगे। ‘एड्स’ और कैंसर जैसे घातक रोगों का अंत हो जाएगा। औषधियों के क्षेत्र में की गई खोजों से मानव दीर्घजीवी बनेगा ।

उपसंहार – हम भारतीयों को भविष्य के प्रति निराशा का रुख नहीं अपनाना चाहिए; क्योंकि आशावादी दृष्टिकोण ही जीवन में हरियाली लाता है। उसी के बल पर हम कह सकते हैं कि विज्ञान एवं मानव के प्रगति पथ पर लगातार बढ़ने के प्रयास मानवता को अवश्य ही मुक्ति की राह दिखाएँगे। देश के कर्णधारों से यही आशा है कि वे भविष्य में ऐसे पग उठाएँ, जिससे हम इक्कीसवीं सदी में निश्चित पग रख सकें, ताकि हमारा प्यारा देश सुख-समृद्धि का आगार बना रहे।