अनुच्छेद लेखन : जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
भारत हमारी मातृभूमि है। अपनी जन्मभूमि सभी को प्रिय होती है। जिस धरती की मिट्टी में खेलकर, जिस धरती का उपजा अन्न खाकर और जिसकी नदियों का पानी पीकर व्यक्ति बड़ा होता है, वही उसकी मातृभूमि होती है। उसके सामने स्वर्ग भी तुच्छ होता है। उर्दू के महान शायर इकबाल ने लिखा है- ‘सारे जहाँ से अच्छा, हिंदोस्ताँ हमारा’ इसका अर्थ है कि भारत विश्व में सबसे सुंदर और सर्वश्रेष्ठ देश है। हिमालय की गगनचुंबी चोटियाँ इसका मस्तक हैं और महासागर इसके पाँव पखारता है। बत्तीस सौ वर्ग किलोमीटर विस्तार वाला यह रंग-बिरंगा महान देश हमारा गौरव है। यह एक प्राचीनतम देश है। भारत प्राकृतिक दृष्टि से भी अतीव सुंदर है। हिमालय के हिममंडित शिखर, समुद्र, अठखेलियाँ करती हुई फसलें, कलकल कर बहती नदियों के जल में पड़ती चाँद और सूरज की परछाई मन को मोह लेती है। जंगलों का सौंदर्य, व्याघ्रों का गर्जन, मयूरों का नृत्य, प्रकृति की सुंदरता से आच्छादित कश्मीर-सभी कुछ इतना आकर्षक है कि आँखें वहीं ठहर जाती हैं। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति अति प्राचीन है। यहाँ पर विभिन्न धर्मों के लोग परस्पर मेल से रहते हैं। हमारे देश की पवित्र मिट्टी को विभिन्न महापुरुषों ने जन्म लेकर पावन बनाया है। हमारे देश में विभिन्नताओं में भी एकता के दर्शन होते हैं। भारत की वास्तुकला तथा शिल्पकला का भी संसार में कोई मुकाबला नहीं कर सकता। ताजमहल विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है। इतनी ऊंची कोटि की विरासत वाला हमारा भारत आज अनेक विपत्तियों से घिरा हुआ है लेकिन फिर भी हमें डरना नहीं है। हमें इनका डटकर मुकाबला करना है।