लेख : गांधी के नाम – वाद की प्रासंगिकता
गांधी के नाम – वाद की प्रासंगिकता
गान्धी मानवीय दृष्टि से एक सम्पूर्ण विकसित, उदात और उदार मानवीयता का नाम है। गान्धी नाम है एक सत्य के अनवरत परीक्षण और उसके लिए किए जाने वाले कठोर परिश्रम एवं अनुशासन का। गान्धी का अर्थ है एक समग्र निष्ठा एवं मानवीय विश्वसनीयता कि जिस का आज राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सभी स्तरों पर निरन्तर ह्रास और विघटन होता जा रहा है। गान्धी नाम और वाद है उस उच्चता का, जो हिमालय सी उच्च होकर भी स्थिर हुआ करती है और सागर के समान सुविस्तृत होकर भी अत्यन्त गहरी एवं गम्भीर हुआ करती है। इस प्रकार की समग्र उच्च आदर्श और महत्त् चेतना के साथ प्रासंगिकता जैसे शब्द जोड़ना वास्तव में उस की महत्ता घटाने या उसे नीचा दिखाने का बौना प्रयास करने जैसा है। वह तो अपने – आप में सम्पूर्ण एवं समग्र होने के साथ – साथ चिर् एवं शाश्वत भी है।
आज गान्धी के देश भारत में उस के नाम और वाद की आड़ में जो कुछ भी उस के तथाकथित अनुयाइयों के माध्यम से घट रहा है, देश और उसकी आदर्श जहानत को भ्रष्ट तरीकों से घसीट कर जिन अन्धेरी गुफाओं की तरफ ले जाया जा रहा है, उस सब के चलते एक विदेशी विचारक का यह कथन सत्य ही प्रतीत होता है कि आने वाले युगों में दुनिया यह जान कर चकित-विस्मित होकर रह जाएगी कि इस धरती पर कभी गान्धी जैसा व्यक्ति भी हो चुका है। सत्य का अनवरत परीक्षण करते रहना गान्धी का लक्ष्य था, जबकि सत्य का निरन्तर गला घोटते रहना उसके नाम – लेवाओं का लक्ष्य बन चुका था। स्वयं परिश्रम कर के अपना पेट भरना, अपना काम आप करना, अपनी आवश्यकताएँ कम-से-कम रखना, उचित-अनुचित किसी भी तरह से संचय न करना, अर्जित धन का अपने को स्वामी न मान कर मात्र संरक्षक मानना, गान्धी का जीवन और वाद सभी कुछ था। लेकिन आज उसके अनुयायी हर प्रकार से भ्रष्ट पराये जीवी बन कर रह गए हैं। परिश्रम से इन का दूर का भी सम्बन्ध नहीं रह गया। उनके हाथ दूसरे का गला तो दबा सकते हैं; पर अपना काम आप नहीं कर सकते। अपनी आवश्यकताएँ कम करके उन्हें पूरी करने के लिए परिश्रम करने के स्थान पर आज के गान्धी वादियों की नजर हमेशा परायी जेबों पर लगी रहती है। वे हर प्रकार से अनुचित संचय करने में गौरव का अनुभव करते हैं। मेहनत कोई करे, सभी की खून-पसीने की कमाई पर अपनी गिद्ध दृष्टि जमाए रह, हर भ्रष्ट तरीके से उसका संग्रह अपने वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के लिए करना ही आज के नेता गान्धीवाद की आड़ में धर्म मानते हैं।
इस प्रकार आज का सत्य यह है कि गान्धीवादियों, गान्धी के पैरोकारों ने ही एक शाश्वत राह को अपने कारनामों से काँटे भर कर अप्रासंगिक बना दिया है। अपनी दूषित मनोवृत्तियों के कारण गान्धीवादी सत्य तक को असम्बद्ध एवं अप्रासंगिक बना कर रख दिया है। गान्धी का नाम लेकर आज मानवता का गला घोंटा जा रहा है। उस युग पुरुष की समाधि की आड़ में व्यभिचार और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है। उसका नाम मात्र जन-मानस को छलने और अपनी सत्ता की कुर्सी बचाए रखने के लिए ही लिया जाता है, आम जनता और व्यापक मानवता के हित – साधन के लिए नहीं। वास्तव में गान्धी नाथूराम गोड़से की गोली से नहीं मरे थे, वे तो आज अपने तथाकथित भक्तों के कुकृत्यों के कारण तिल – तिल कर हर रोज़ मर रहे हैं। हम सभी अपने व्यवहारों से उनका गला धीरे-धीरे घोट रहे हैं, ताकि वे सचमुच मर कर अतीत की भूली-बिसरी कहानी बन जाएँ।
गान्धीवाद वास्तव में मात्र आज के लिए ही प्रासंगिक नहीं है, बल्कि हर युग की श्रेष्ठ मानवता और उसके श्रेष्ठ कार्यों एवं उपलब्धियों के सन्दर्भों में प्रासंगिक है। सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारा, असंचय, सहयोग, सहकारिता आदि ऐसे उदात एवं शाश्वत गुण हैं कि जिन के सामने कभी किसी भी युग में प्रासंगिकता जैसा प्रश्न ही टंकित नहीं किया जा सकता। गान्धी जी ने हाथ से काम करने, सादा जीवन बिताने, ट्रस्टीशिप जैसे जिन परीक्षत सत्यों का सिद्धान्तों एवं मूल्यों का प्रतिपादन किया था, आज भी उन्हीं को अपना कर यह देश तो आम जनता का हित-साधन कर ही सकता है, अपने साधनों के बल पर प्रगति एवं विकास का नया अध्याय भी लिख सकता है। केवल इस देश के लिए ही नहीं, गान्धीवादी सिद्धान्त प्रत्येक विकासशील राष्ट्र के लिए अपनी निश्चित प्रासंगिकता रखते हैं।
आज विश्व मानवता के सामने किसी भी क्षण शान्ति-भंग होने और युद्ध छिड़ने का जो खतरा मंडरा रहा है, केवल गान्धी वाद ही उस से मानवता की रक्षा कर सकता है। आज जो बात – बात में व्यक्तियों, समाजों और देशों में ठन जाया करती है, उस तरह की स्थितियों से गान्धीवाद ही छुटकारा दिला सकता है। इसी प्रकार आज जो गरीबी के विरुद्ध संघर्ष कर के उसे जड़ से उखाड़ फेंकने की बातें और प्रयास किए जा रहे हैं, वे भी गान्धी की राह पर चलकर ही सफल हो सकते हैं। सब से बढ़ कर गान्धी के नाम और वाद की सफलता, सार्थकता और प्रासंगिता इस दृष्टि से है कि केवल उसके बताए रास्ते पर चल कर ही मानवता का कल्याण और उसके भविष्य की सुरक्षा संभव हो सकती है।