भाव पल्लवन : ‘पर- उपदेश कुशल बहुतेरे’
‘पर- उपदेश कुशल बहुतेरे’
पल्लवन : हमारे देश में पर-उपदेशकों की कमी नहीं है। किसी भी संकटग्रस्त व्यक्ति की सहायता करने चाहे कोई आगे न आए, परंतु उपदेश देने वालों का कभी अभाव नहीं रहता। संभवत: ‘उपदेश’ ही एक ऐसी वस्तु है जिसे हम बहुत प्रसन्नता से देना चाहते हैं। किसी विद्वान ने सत्य ही कहा है कि- ‘हम उपदेश सुनते हैं मन भर, देते हैं टन भर, पर ग्रहण करते हैं कण भर।’ उपदेश देने की कला में माहिर व्यक्ति सहायता देने के नाम पर अधमरे हो जाते हैं। ईश्वर की कृपा से ऐसे व्यक्तियों के जीवन में स्वयं उन उपदेशों पर मनन करने का अवसर भी कम ही आता है। उपदेशों को अमल में लाने वालों की गणना उँगलियों पर की जा सकती है। तुलसीदास जी भी कह गए हैं-
पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
जे आचरहिं ते नर न घनेरे।।