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बिगड़ा राजकुमार

राजा भीम सिंह अपने समय के बहुत ही बहादुर और दयालु राजा माने जाते थे। उनके राज में सब लोग खुश थे, क्या अमीर और क्या गरीब,  छोटा – बड़ा, हर एक के साथ उनका बराबर का व्यवहार होता था।

यही कारण था कि भीम सिंह की प्रजा उससे अत्यंत खुश थी। राजा भीमसिंह जी के कोई सन्तान नहीं थी जिसके कारण वे अत्यंत दुःखी और उदास रहते थे, राजा के इस दुःख को जनता नहीं देख सकती थी इसलिए देश की सारी जनता ने मंदिरों में जाकर अपने राजा के लिए सन्तान की प्रार्थनाएं की। सारे देश में यज्ञ किए गए, साधु – संतों और फकीरों को खाना खिलाया गया। एक लम्बे समय तक यह कार्य चलता रहा।

राजा भीम सिंह स्वयं अपनी पत्नी रानी लीलाबाई को लेकर तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़े थे। इस तीर्थयात्रा का एकमात्र उद्देश्य सन्तान प्राप्ति था।

जैसे ही राजा भीम सिंह अपनी लम्बी तीर्थयात्रा से वापस लौटे तो उनकी प्रजा ने दिल खोलकर उनका स्वागत किया साथ ही यह नारे लगाए –

“महाराज की जय।”

“महाराज को पुत्र दो।”

“हमें राजकुमार दो।”

“हम सब मिलकर भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि हमारे महाराज के घर पुत्र ही मिले और हमें अपना राजकुमार मिले।

सारी प्रजा के मुँह से एक ही आवाज निकल रही थी, चारों ओर एक ही आवाज थी और फिर भगवान ने जनता की आवाज सुन ली थी। इसीलिए तो लोग कहते हैं कि प्रजा की आवाज़ भगवान का आदेश होता है। रानी की गोद हरी हुई तो सारे राज्य में खुशी की लहर दौड़ गई। लोग खशी से नाचते हुए अपने घरों से निकल पड़े और नाचते – गाते हुए राजा के भवन तक पहुंचे। राजा भीम सिंह अपनी प्रजा को खुश देखकर स्वयं भी बहुत खुश हुए।

उन्होंने दिल खोलकर दान – पुण्य किया। यह खुशियां एक लम्बे समय तक चलती रही।

और फिर इन खुशियों का परिणाम निकला कि राजा भीम सिंह को एक पुत्र वर्षों की प्रतीक्षा के पश्चात मिल ही गया और प्रजा को अपना राजकुमार मिल गया। ऐसे खुशी के अवसर पर सारा देश खुशी से झूम उठा, चारों ओर राग-रंग की महफिल गर्म हो गई थी, राज दरबार में पूरे सात दिन के लिए गरीबों के लिए मुफ्त लंगर लगाया गया, सब कर्मचारियों को इनाम बांटे गए।

खुशियां ही खुशियां, जैसे इस राजकुमार के पैदा होते ही चारों ओर फैल गई थी, इन्हीं खुशियों के बीच राजकुमार का नामकरण संस्कार भी हो गया था। पंडितों ने वेद मन्त्रों के साथ यह शुभ काम करते हुए उसका नाम राजकुमार अर्जुन सिंह रखा।

अर्जुन सिंह अपने देश की सारी प्रजा का प्यार पाकर बड़ा होने लगा, राजा जी ने उसकी शिक्षा के लिए देश भर के उच्च कोटि के विद्वान बुलाए जो उसे हर प्रकार की शिक्षा देने लगे। सैनिक शिक्षा के लिए बड़े-बड़े वीर योद्धा बुलाए गए, जो राज कुमार को युद्ध के बारे में पूरे-पूरे दांव-पेच सिखाने लगे थे।

इसी प्यार के बीच में अर्जुन सिंह बड़ा हो रहा था। राजा भीम सिंह अपने बेटे को बड़ा होते देखकर अति खुश होते, जव वह सुबह के समय अपने घोड़े पर सवार होकर निकलते तभी रानी लीलाबाई और दासियां उसकी बलाएं लेती हुई कहती थी –

“कहीं नजर न लग जाए हमारे चांद से लाल को ”

इसी तरह राजकुमार बड़ा होता गया।

इसके साथ-साथ ही एक विचित्र घटना घटी, जिसका बोझ राजा के मन पर बहुत अधिक पड़ा। वह घटना भी राजकुमार अर्जुन सिंह की इसी जिद्द का ही तो परिणाम था जो उसने महामन्त्री का भी अपमान कर डाला था।

जब महामन्त्री कुछ गरीबों और बेसहारा लोगों की कुछ सहायता करना चाहते थे तो उसी समय राजकुमार अर्जुन सिंह अपने घोड़े पर सवार होकर उधर से होकर आ निकलते थे।

“सब लोगों ने राजकुमार को प्रणाम किया।”

“क्या हो रहा है सुबह-सुबह महामन्त्री जी!”

“राजकुमार जी! यह सब लोग बेसहारा हैं और भूखे हैं, महाराज के आदेश हैं कि हमारे दरबार में कोई भी भूखा और जरूरतमंद आए तो उसे खाली न भेजा जाए।”

“महामन्त्री, क्या आप लोगों को पता नहीं कि देश में खजाने को इस तरह लुटवाने का परिणाम क्या होगा?”

“राजकुमार जी गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करने से तो राजा लोगों की जय –  जयकार होती है। उन्हें लोग दयालु और देवता कहते हैं, अपनी प्रजा पर दया करना और उनके दुःखों को दूर करना राजा का कर्तव्य है।”

यही हमारे महाराज भीमसिंह जी की सबसे बड़ी शान है ।

“नहीं महामंत्री, यह सब झूठी शान है, हम इन बातों को नहीं मानते। हम हरामखोरों और बेकार घूमने वालों को दान देकर अपने देश का खजाना खाली नहीं करना चाहते। जाओ इन्हें निकाल दो”, क्रोध से भरे राजकुमार ने उन लोगों को वहां से भाग जाने के लिए कहा।

वे लोग तो भाग गए ……..

किन्तु……..

महामन्त्री का दिल टूट गया था। बात राजा तक पहुंची तो राजा इस बात को सुनकर अत्यंत चिन्तित हुए। उन्हें तो सपने में भी आशा नहीं थी कि उनका बेटा इतना कठोर और संगदिल होगा। इस घटना से बहुत दुःखी हुए राजा भीमसिंह…

रात को उन्हें खाना भी अच्छा नहीं लगा। इस घटना के पश्चात् और बहुत सी घटनाएं जुड़ती जा रही थीं। जब राजा को यह पता लगने लगा था कि राजकुमार जिद्दी के साथ-साथ अत्याचारी भी होता जा रहा है। जिसके कारण प्रजा के मन में उनके लिए घृणा पैदा होती जा रही है । बहुत ही दुःखी होकर राजा ने अपने देश के सभी बड़े-बड़े विद्वानों एवं साधु-महात्माओं को राज दरबार में बुलाया गया, उन सबके आगे अपने मन का यह दुःख रखा।

राजकुमार की बुद्धि को बदलना, यह कोई साधारण बात नहीं थी और न ही कोई अपने सिर पर इतनी बड़ी मुसीबत मोल लेने के लिए तैयार था। इन सब लोगों को चुप देखकर राजा की चिंता और बढ़ गई थी। वे उदास स्वर में बोले।

“इस खामोशी का अर्थ मैं यह समझूँ कि मेरे देश में कोई ऐसा विद्वान नहीं है जो मेरे बिगड़े हुए बेटे को ठीक कर सके और न ही ऐसा कोई साधु –  सन्यासी, जो मेरे भटके हुए बेटे को अन्धेरे से निकालकर प्रकाश में ला सके।

राजा की निराशा भरी बातें सुन एक साधु ने उठकर कहा, “महाराज, आप निराश न हों। राजकुमार को कुछ ही समय के अन्दर ठीक कर दूंगा।”

“क्या कह रहे हैं साधु महाराज आप ?”

“मैं ठीक कह रहा हूं राजन, बस कल सुबह की ही तो बात है। जब राजकुमार घोड़े पर सवार होकर जंगल में जाएंगे तो मैं उन्हें वहीं पर मिलूंगा, बाकी का काम आप मुझ पर छोड़ दीजिए।”

राजा भीमसिंह को जैसे उस साधु की बात पर विश्वास न आ रहा हो किन्तु फिर भी उन्होंने बात मान ही ली थी।


दूसरे दिन सुबह जैसे ही राजकुमार अर्जुन सिंह अपने घोड़े पर चढ़कर जंगल की ओर शिकार के लिए निकला तो ठीक उसी जंगल में साधु भी पहुंच गए थे।

राजकुमार ने साधु – महात्मा को देखकर प्रणाम किया।

साधु ने आशीर्वाद देते हुए कहा, “जीते रहो बेटे। सदा सुखी रहो, खुश रहो।”

इसके साथ ही साधु ने कहा – “बेटे, जरा थोड़ा सा मेरा काम कर दोगे। “

“क्यों नहीं महाराज – आप हुक्म तो कीजिए।”

“बेटे यह सामने जो छोटा-सा पौधा है न, इसके थोड़े से पत्ते तोड़कर पहले चखकर देख लेना यदि मीठे हों तो ले आना क्योंकि मैंने आज भगवान जी का प्रसाद तैयार करना है।”

“अभी लो महाराज”, कहकर राजकुमार घोड़े से उतर कर उस पौधे की ओर चल पड़ा।

उसने जाते ही उसकी पत्तियां तोड़ी। परन्तु जैसे ही उसने उनको मुंह में डाला – कड़वाहट के मारे राजकुमार के मुँह का बुरा हाल हो गया। उसने थूकते हुए सारी पत्तियां दूर फेंक दी और क्रोध से उस कड़वे पौधे की ओर देखने लगा।”

“साधु महाराज यह तो बहुत कड़वी हैं।”

“राजकुमार, तुमने उन्हें अपने मुँह से निकाल कर दूर क्यों फेंका ?”

“साधु जी वह तो कड़वा जहर है भला मैं उनको अपने मुँह में कैसे रख सकता था!”

बेटे, यही इस संसार का उसूल है, यहां पर लोग हर कड़वी चीज से घृणा करते हैं, उसे मुँह से तो निकाल कर फेंक ही देते हैं, इसके साथ – साथ उसके पास से गुजरना भी उचित नहीं समझते, कड़वापन नफरत की नींव हैऔर मीठापन प्यार की

“साधु महाराज आप यह क्या कह रहे हैं ?”

बेटे, मैं तुम्हें जीवन के उस सबसे बड़े रहस्य के बारे में बता रहा हूं, जिसका ज्ञान तुम्हें अभी तक नहीं मिला। जाओ, इसी बात को याद रखना मीठेपन से तुम सारे संसार का दिल जीत सकते हो। सदा मीठा बोलो, लोग तुम्हें प्यार करेंगे।

जैसे ही राजकुमार घर वापस आया तो लोगों ने देखा कि वह बिल्कुल बदला-बदला सा लग रहा था।

“अब वह मीठा ही बोलता था।”

राजा अपने पुत्र के बदले रूप को देखकर बहुत खुश हो गए थे, उनके मन से बहुत बड़ा बोझ टल गया था।