हितोपदेश की कहानियाँ – बलिदान

बलिदान

एक खूंखार लकड़बग्घे ने गाँव वालों को बहुत परेशान कर रखा था। रात में वह चुपके से गांव में घुस आता। कभी किसी पशु को मार कर उठा ले जाता, कभी किसी बच्चे को। लकड़बग्घे को मारने की गांव वालों ने बहुत कोशिश की, पर हाथ नहीं लगा। बाहर से शिकारी भी बुलाये गये, लेकिन वे भी उसे मारने में असफल रहे। चारों ओर से निराश गांव वालों ने सोचा चल कर बुजुर्गों से सलाह लेनी चाहिए। अब तो वही कोई रास्ता सुझा सकते हैं।

वे सब मुखिया समेत बुजुर्गों के पास पहुंचे। उनके सामने अपनी समस्या रख कर उपाय पूछने लगे।

एक बुजुर्ग ने कहा, “जानवर आग से डरते हैं। रोज रात को गाँव के चारों ओर आग जलाये रखो। लकड़बग्घा हरगिज नहीं आयेगा।”

“लेकिन यह तो बहुत मुश्किल काम है।” एक युवक ने तर्क किया, भला, इतनी लकड़ी आयेगी कहाँ से ? घरों में चूल्हा जलाने के लिए भी तो ठीक से लकड़ी नहीं मिलती।

युवक की बात लोगों को उचित लगी। कुछ देर बाद एक दूसरे बुजुर्ग ने कहा, “चलो लकड़ी नहीं है तो न सही। फिर तो ऐसा करो भैया, गांव के चारों ओर एक गहरी खाई खोद लो । उसमें लबालब पानी भर दो, लकड़बग्घा तैरना तो जानता नहीं, ” गांव में घुस ही नहीं पायेगा।”

हां, यह तो हो सकता है। कुछ लोगों ने दूसरे बुजुर्ग का समर्थन किया। पर तुरंत उनकी बात काटते हुए वही युवक फिर बोला, खाई खोदना मुश्किल नहीं है, लेकिन इतना पानी आयेगा कहां से ? गाँव के अधिकांश कुएँ तो सूख रहे हैं। “बात तो सही है” कुछ लोग युवक से सहमत हुए, लेकिन गाँव का मुखिया युवक को झिड़कते हुए बोला, “मैं देख रहा हूँ तुम हर बात में मेन-मीख निकाल रहे हो। अगर तुम इतने अक्लमन्द हो तो फिर स्वयं कोई रास्ता क्यों नहीं खोज निकालते हो, क्यों अपना और बुजुर्गों का समय खराब कर रहे हो ।”

युवक मुखिया की बात का बुरा न मानते हुए बोला, बड़ों के सामने मुँह खोलते हुए मुझे संकोच हो रहा था। अच्छा, वैसे एक तरकीब मेरे दिमाग में हैं। उसे सुनकर लोगों के चेहरे पर उत्सुकता दौड़ गई।

कुछ सोचते हुए वह बोला, एक भारी भरकम पिंजरा तैयार करवाइये, जो अपने आप बन्द हो जाता हो । मुखिया उसकी बात सुन कर व्यंग्य से हंस पड़ा और बोला, खाली पिंजरे में लकड़बग्घा घुसेगा ही क्यों ?

आप ठीक कह रहे हैं। खाली पिंजरे में लकड़बग्घा क्यों घुसेगा। इसलिए पिंजरे के भीतर एक पशु बांधना होगा। पशु के लालच में लकड़बग्घा पिंजरे के भीतर छलांग लगायेगा। बस उसी झटके में पिंजरा बंद हो जायेगा। सुबह आप लोग उसे खत्म कर दीजियेगा लेकिन इसके लिए हम में से किसी को अपना पशु बलिदान करना होगा। बोलिये, मंजूर है ?

युवक की बात लोगों को जंच गई। उन्होंने शाबाशी में उसकी पीठ ठोंकी। फिर गाँव के लोहारों को आदेश दिया कि वे कल संध्या तक अपने आप बंद हो जाने वाला पिंजरा तैयार कर दें। पशु की कोई समस्या नहीं है। इतनी बड़ी विपत्ति से छुटकारा पाने के लिए कोई भी अपनी बकरी सहर्ष दे देगा। सारी बात तय हो गई। लोग निश्चिंत होकर अपने-अपने घर चले गए।

दूसरे दिन संध्या से पहले ही पिंजरा बनकर तैयार हो गया और उसे गाँव की सीमा पर रख दिया गया। अब पिंजरे के अन्दर पशु भर बाँधना शेष था, इसी बात पर लोगों में विवाद छिड़ गया। कोई कहता, “तुम्हारे पास बहुत सी बकरियाँ हैं, एक दे क्यों नहीं देते?” कोई कहता, “तुम्हारे पास तो दर्जनों भेड़ें हैं। तुम ही एक दे दोगे तो कौन-सी कम हो जायेंगी ?” कोई कहता, “मेरे पास तो दो ही बकरियाँ हैं। जरा सोचो, अगर मैं उनमें से एक लकड़बग्घे की भेंट चढ़ा दूँ तो मेरे छोटे-छोटे बच्चे दूध के लिए नहीं तरस जायेंगे ?”

इस तू-तू, मैं-मैं में कोई फैसला न हो पाया। अंधेरा घिरने लगा। बात को कल पर टाल कर लोग अपने-अपने घरों को चल दिये। लोगों की क्षुद्रता पर युवक का मन खिन्न हो उठा।

अपने झोंपड़े में लौट कर वह विचार करने लगा। लकड़बग्घा हर रात किसी न किसी की जान लेकर रहता है। आज भी वह किसी को अपना आहार बनायेगा हालांकि कल अवश्य कोई न कोई अपने पशु की बलि देने के लिए राजी हो जायेगा, लेकिन, अनिश्चय के कारण आज व्यर्थ ही एक निर्दोष को अपने प्राण गंवाने होंगे।

उसने सोचा अपने पशुओं के प्रति लोगों का मोह स्वाभाविक है। वे उन्हें अपने बच्चों की तरह प्यार करते हैं। इसीलिए लकड़बग्घे को भेंट चढ़ाते हुए उन्हें कष्ट हो रहा है। तो क्यों न वह स्वयं पिंजरे में जाकर बैठ जाये ? लकड़बग्घा उसे खा जायेगा, लेकिन गाँव वाले तो इस भयानक मुसीबत से छुटकारा पा जायेंगे। फिर वह अनाथ है, उसके मरने से किसी को कष्ट भी न होगा। उल्टे सबका भला ही होगा और उसका जीवन भी सार्थक हो जायेगा।

युवक तुरंत पिंजरे में जाकर बैठ गया और लकड़बग्घे के आने की प्रतीक्षा करने लगा।

सुबह जब गाँव वाले शौचादि के लिए खेतों की ओर निकले तो अनायास उनकी दृष्टि पिंजरे की ओर गई। पिंजरे में बन्द लकड़बग्घे को देखकर वे हैरान रह गये। भागे-भागे पिंजरे के पास पहुंचे। भीतर का दृश्य देखते ही उनकी आंखें विस्मय से फट पड़ी। युवक की अधखायी लाश पिंजरे के भीतर पड़ी थी और लकड़बग्घा अपनी मौत की घड़ियाँ गिन रहा था।

सभी की गर्दनें लज्जा से झुक गयीं। आँखें भीग गयी। युवक ने अपने प्राणों की बलि देकर सारे गाँव को संकट से उबार लिया था और उनके सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया था, जो वास्तव में सबके लिए प्रेरणा बन गया।