बाल गीत – धरती का लाल

धरती का लाल

बड़े सवेरे प्रातः काल,

उठ जाता धरती का लाल।

अपने खेतों पर जाता,

कंधे पर लिए कुदाल।

दोनों हाथ बांटता है,

जन-जन की खुशहाली।

मरुस्थल में भी फूल खिलाता,

कदम – कदम हरियाली।

बूंद पसीने की झर – झर कर,

धरती पर बनती मोती।

खेती ही इसका जीवन है,

जीवन देती है खेती।