CBSEEducationNCERT class 10thPunjab School Education Board(PSEB)

टोपी शुक्ला – सार


‘टोपी शुक्ला’ कहानी में लेखक ‘राही मासूम रज़ा’ ने अपनेपन की तलाश में भटकते, अटकते नज़र आते पात्र टोपी को नायक बताया है। कथानायक टोपी के अपनेपन की पहली खोज इफ्फ़न से पूरी होती है। टोपी का अजीज दोस्त इफ्फ़न है, उसकी दादी माँ, घर की नौकरानी सीता ग्रामांचल की बोली बोलने में निपुण हैं।

लखनऊ शहर में एक जाने – माने डॉक्टर भृगु नारायण शुक्ला रहते थे। उनका बेटा टोपी शुक्ला था और उनके पड़ोस में सैय्यद मुर्तजा हुसैन और उनका पुत्र इफ्फ़न था। दोनों बच्चों में गहरी मित्रता थी। एक-दूसरे के साथ दोनों पात्रों (मित्रों) का विकास जुड़ा था। वे एक-दूसरे के बिना नहीं रह पाते थे। टोपी को इफ्फ़न की दादी से बहुत स्नेह (लगाव) था, घर में किसी चीज़ का अभाव नहीं था फिर भी वह लाख मना करने के बावजूद इफ्फ़न की हवेली की तरफ बरबस खिंचा चला जाता। इफ़्फ़न की दादी एक जमींदार की बेटी थी। घर में दूध, घी खाती आई थीं परन्तु विवाह के बाद लखनऊ आकर मौलवी की पत्नी बनने के बाद घी, दूध के लिए तरस गईं। वह मौका मिलने पर मायके जाने के लिए उतावली रहतीं।

इफ्फ़न जब चौथी कक्षा में पढ़ता था, टोपी से उसकी मुलाकात हो चुकी थी। इफ्फ़न को अपनी दादी से बड़ा प्यार था, वैसे उससे घर पर सभी प्यार करते थे, परन्तु दादी से उसे सबसे ज्यादा प्यार मिलता था, दादी कभी उसका दिल नहीं दुखातीं और वह रात को भी उसे कहानियाँ सुनाया करती थीं, परन्तु इसके विपरीत टोपी के घर में उसे कोई प्यार नहीं करता, बल्कि दादी से भी उसे स्नेह नहीं मिलता। इसलिए इफ़्फ़न की दादी को टोपी बहुत पसन्द करता था और उसे उनसे बहुत स्नेह मिलता था।

एक दिन अचानक टोपी के मुख से भोजन के समय ‘अम्मी’ शब्द निकल गया, जिसके कारण घर में टोपी को बुरा-भला कहा गया। दादी, माँ, पिता आदि सभी से उसे डाँट पड़ी। टोपी के ऊपर इफ़्फ़न के घर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मुन्नी बाबू ने टोपी की झूठी शिकायत करते हुए कहा कि उसने टोपी को कबाबची की दुकान पर कबाब खाते देखा है। इस शिकायत पर टोपी के घर उसकी माँ राम दुलारी द्वारा बहुत पिटाई की गई।

बालक टोपी का मन इस घटना के बाद से बहुत दुःखी रहने लगा, उसने इफ़्फ़न से कहा, “क्या हम लोग अपनी दादी बदल लें।” “तोहरी दादी हमारे घर चली आएँ और हमरी तोहरे घर चली जाएँ।” कुछ समय बीतने के बाद अचानक एक दिन इफ्फ़न की दादी की मृत्यु हो गई। इस घटना से टोपी अकेला और दुःखी रह गया। इफ्फ़न का घर टोपी के लिए सूना हो गया और उसने अपने को अकेला पाया। उसे दुःख था कि इफ्फ़न की दादी क्यों मर गयी, उसकी जगह मेरी दादी क्यों नहीं मर गई।

10 अक्टूबर, 1945 के दिन टोपी शुक्ला का मित्र इफ़्फ़न लखनऊ छोड़कर मुरादाबाद चला गया, क्योंकि इफ्फ़न के पिता कलेक्टर, सैय्यद मुर्तजा हुसैन साहब का तबादला मुरादाबाद हो गया था। अब टोपी अकेला रह गया था। धीरे-धीरे टोपी बड़ा होने लगा और वह कक्षा नौ में आ गया। उसके ऊपर घर की जिम्मेदारी आ गई थी, उसे पढ़ने के लिए समय नहीं मिल पाता था एवं टाइफाइड होने के कारण वह नौवीं कक्षा में तीन बार फेल हुआ जिस कारण उसे मानसिक रूप से भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। किसी तरह वह तृतीय श्रेणी से पास होकर अगली कक्षा में आया। इस सबके बावजूद उसे घर में प्रोत्साहन मिलने की बजाय कटु आलोचनात्मक शब्द सुनने को मिले। दादी ने कहा, ,“वाह! भगवान नजरे-बद से बचाए। रफ्तार अच्छी है। तीसरे बरस तीसरे दर्जे में पास तो हो गए।…..”