कविता की अंत्याक्षरी
अब आप शब्दों की अंत्याक्षरी की विधि तो जानते ही हैं। इसी प्रकार कविता, गीत, दोहे, चौपाई आदि की अंत्याक्षरी को भी अपने मनोरंजन का साधन बना सकते हैं। सबसे पहले यह दोहा बोलिए :
प्रेम-प्रेम सब कोइ कहे, प्रेम न चीन्है कोय।
आठ पहर मीना रहु, प्रेम कहावे सोय।।
अब संत कबीर के इस दोहे के अंत में ‘य’ व्यंजन आया है। आप कोई दोहा, चौपाई, गीत अथवा पद्य ऐसा बोलिए, जिसके आरंभ में ‘य’ आया हो। यह अवश्य ध्यान रखिए कि कविता, गीत, पद्य आदि की कम से कम दो पंक्तियाँ अवश्य बोलनी पड़ेगी। देखिए, कवि पद्माकर की ये पंक्तियाँ :
या अनुराग की फाग लखो, जहाँ रागती राग किसोर किसोरी।
त्यों पद्माकर घालीघली, फिर लाल ही लाल गुलाल की झोरी।।
इस प्रकार दो छात्र अथवा उनके दो दल अंत्याक्षरी की प्रतियोगिता कर सकते हैं। इससे मनोरंजन भी होगा और साथ ही बहुत से दोहे, कविता अथवा गीत कंठस्थ हो जाएँगे। ध्यान दीजिए कि इसमें स्वरों की गणना पर बल नहीं दिया जाता है। पद्म के अंत में जो व्यंजन आया हो, उसी से आरंभ होने वाला दोहा अथवा पद्य बोलना पड़ता है। यहाँ आपके संकलन के लिए ‘क’, ‘ख’, ‘ग’, ‘घ’ आदि के क्रम से प्रत्येक व्यंजन से आरंभ होने वाला एक-एक दोहा या पद्य दिया जा रहा है। अपनी नोटबुक में क्रमानुसार नोट कीजिए और कंठस्थ करके ज्ञानवर्धन के साथ-साथ अंत्याक्षरी का आनंद प्राप्त कीजिए।
(क)
कुछ मस्तक कम पड़ते होंगे, जब महाकाल की माला में।
माँ माँग रही होगी आहुति, जब स्वतंत्रता की ज्वाला में।
शिवमंगल सिंह सुमन
(ख)
खैर, खून, खाँसी, खुशी, बैर प्रीति मधुपान।
रहिमन दाबे ना दबै, जानत सकल जहान।।
रहीम
(ग)
गरदन को कहूँ सुराही सांसों को सागर की लहर लोल,
नासिका कह दूँ तेज़ कटारी और काश्मीरी सेब कपोल।
स. स. मीशा
(घ)
घूमता फिरता वहाँ पहुँचा मनोहर कुंज में, थी जहाँ इक सुंदरी बैठी महा सुख -पुंज में।
धृष्ट मारुत भी उड़ा अंचल तुरत चलता हुआ, माधवी के पत्र कानों को सहज मलता हुआ।।
(ङ)
चले जा वेग भरे किस ओर को मृग मरीचिका तुम्हें दिखाती छोर को।
किंतु नहीं हे पथिक ! वह जल है नहीं, बालू के मैदान सिवा कुछ है नहीं।
जयशंकर प्रसाद