अनुच्छेद लेखन : सत्संगति
सत्संगति
सत्संगति का अर्थ है – अच्छे मनुष्यों की संगति। सत्संगति के प्रभाव से अनेक दुश्चरित्र व्यक्ति सच्चरित्र बन पूजनीय बन गए हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण महर्षि वाल्मीकि हैं। अनेक क्रूर-कर्म पुरुष सत्संगति से ही महापुरुष बन गए, क्योंकि गुण और दोष मनुष्य में संगति से ही आते हैं। ‘संसर्गजाः दोषगुणाः भवन्ति।’ सत्संगति से मनुष्य की समाज में प्रतिष्ठा होती है। गुलाब के पौधे के पास की मिट्टी भी कुछ समय में सुवासित होकर अपने संपर्क में आने वाले को सुगंध से भर देती है – ‘बाँटनवारे को लगै ज्यों मेंहदी का रंग।’ ठीक इसी प्रकार दुष्ट-से-दुष्ट व्यक्ति भी सज्जनों के संपर्क में आकर दयावान, विनम्र, परोपकारी और ज्ञानवान हो जाता है। सत्संगति से मनुष्य विवेकी और सदाचारी बनता है। सदाचारी बनने पर समाज उसका आदर-सम्मान करने लगता है। कुसंगति से अनेक हानियाँ होती हैं। श्रेष्ठ विद्यार्थी जो सदैव प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होते हैं वे कुसंगति से बिगड़ जाते हैं। असफल तक हो जाते हैं। केवल नीच साथियों के कारण बड़े-बड़े घराने नष्ट हो गए। बुद्धिमान से बुद्धिमान व्यक्ति पर भी कुसंगति का प्रभाव अवश्य पड़ता है। यह ऐसा जादू है जो कि अपना प्रभाव दिखाए बिना नहीं रहता।