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ॐ ॐ ॐ

पण्डित जसराज जी की यह रचना अद्भुत है। इसे सुनकर स्वयं को किसी दूसरे लोक में महसूस करना कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी।

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ओम ओम ओम

सुनिए एवं स्वयं निर्णय कीजिए।

कोई भगवान के होने में विश्वास करता है और कोई प्रकृति के होने में।

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दोनों में से हम किसकी रचना हैं।

फर्क इससे पड़ता है कि हम पुराने वस्त्रों की तरह, पुराने समय को छोड़कर आगे बढ़कर आज में जीना सीखें।

कल भी कभी आज था और आने वाला कल भी कभी आज होगा।

कहते हैं कि इस ध्वनि को आत्मसात करने के लिए मन पर नियंत्रण करने की आवश्यकता होती है। पर मुझे लगता है कि मन स्वतः इस ध्वनि के साथ आत्मसात होना शुरू कर देता है।

देखते हैं कितना कर पाते हैं, परन्तु एक कोशिश तो कर सकते हैं।