काव्याँश : विवश नहीं वे विकल नहीं हैं
विवश नहीं वे विकल नहीं हैं घने अंधकार में चमकते ज्योति कण हैं। नहीं ज्योति आँखों की फिर भी क्या
Read moreविवश नहीं वे विकल नहीं हैं घने अंधकार में चमकते ज्योति कण हैं। नहीं ज्योति आँखों की फिर भी क्या
Read moreक्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो। क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल, सबका लिया सहारा। पर नर-व्याघ्र, सुयोधन
Read moreक्यों न उठा लेता निज संचित, कोष भाग्य के बल से ? ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में मनुज नहीं
Read moreचला आता है संगतकार का स्वर जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान जैसे उसे याद दिलाता
Read moreकौन रोके मन की उड़ान निर्बंध। विवश नहीं वे विकल नहीं हैंघने अंधकार मेंचमकते ज्योति कण हैं।नहीं ज्योति आँखों कीफिर
Read moreऔरों की सुनता मैं मौन रहूँ मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी, मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो
Read moreजिस देश में जिए हैं, उसके लिए मरेंगे! क्या प्रिय स्वदेश को हम स्वाधीन कर सकेंगे?फिर मान-शैल शिर पर आसीन
Read moreमानवता हो मंगलकारी सम्राटों की सत्ता काँपी, भूपों के सिंहासन डोले। गणतंत्र तुम्हारे आते ही, जन-मन जागे, कण-कण बोले। गणतंत्र
Read moreकरो ये प्रण अब न चलेगा काम इससे करो ये प्रण, साथियों से अब भूल के भी न लड़ेंगे हम।
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