अनुच्छेद – सत्संगति


एक गला हुआ फल सभी को गला देता है जबकि एक पका फल सभी फ़लों को सभी को पका देता है। कुछ इसी प्रकार का प्रभाव संगति का मानव पर भी होता है। सत्संगति का अर्थ अच्छे लोगों की संगति तो है ही परंतु शांत व शुद्ध वातावरण एवं अच्छे विचारों का भी हम पर बहुत असर पड़ता है। मन सदा लक्ष्य की ओर केंद्रित रहता है व इधर- उधर नहीं भटकता। जैसे एक बच्चा अपने माता-पिता के व्यक्तित्व का प्रतिबिंब होता है, उसी प्रकार संगति का असर हमारे व्यवहार पर भी होता है। जहाँ सत्संगति हमें सफलता की राह पर ले जाती है, वही कुसंगति असफलता के गर्त में गिरा देती है। गलत काम करना धीरे-धीरे हमारी आदत में शुमार हो जाता है और पूरा व्यक्तित्व विषैला हो जाता है। उसहरण के लिए अंगुलिमाल का जीवन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। एक डाकू से मिलने के पश्चात् वह भी एक लुटेरा व हत्यारा बन गया और बुद्ध की शरण में आकर ऐसा महापुरुष बना जिसे आज भी लोग याद रखते हैं। अतः व्यक्ति को अपनी संगति का चुनाव सोच-समझकर करना चाहिए | कबीर भी अपने एक दोहे में बताते हैं कि किस प्रकार एक ही पानी की बूँद मोती का रूप भी धारण कर सकती है और विष का भी, फर्क है तो सिर्फ इस बात का कि वह बूँद किसके संपर्क में आती है। हमें भी ध्यान रखना चाहिए कि हम किन लोगों के संपर्क में आ रहे हैं। | सिर्फ दिन में एक घंटा कीर्तन में जाकर बैठ जाना, सत्संगति में होना नहीं कहलाता, वहाँ पर कीर्तन कर रहे लोगों का मन यदि कपट से भरा है तो आप कुसंगति में ही है। | जिनके साथ पूरा दिन बिताना है वे लोग यदि सज्जन हों तो आपकी सफलता के रास्ते खुल जाते हैं।