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कृष्णावतार

शूरसेन नाम के एक राजा थे। शूरसेन के पुत्र वासुदेव विवाह करके अपनी पत्नी देवकी के साथ घर जाने के लिए रथ पर सवार हुए। उग्रसेन का बेटा था कंस।वह अपनी चचेरी बहन देवकी को प्रसन्न करने के लिए स्वयं ही रथ हांकने लगा

जिस समय कंस रथ हांक रहा था, उस समय आकाशवाणी ने उसे सम्बोधित करते हुए कहा –”अरे मूर्ख ! जिसको तू रथ में बिठाकर लिए जा रहा है, उसकी आठवें गर्भ की संतान तुझे मार डालेगी।”

कंस बड़ा पापी था। आकाशवाणी सुनते ही वह देवकी को मारने के लिए तैयार हो गया। अंत में वासुदेव जी ने देवकी के पुत्रों को कंस को सौंपने का वचन देकर देवकी की रक्षा की।

ततपश्चात कंस ने देवकी और वासुदेव को कैद कर लिया। उन दोनों से जो-जो पुत्र होते गए, उन्हें वह मारता गया। किंतु भगवान के विधान को कौन रोक सकता है ? आखिर वह समय आ ही गया। देवकी के गर्भ से जगत के तारणहार नारायण ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया।

भगवान के जन्म लेते ही योगमाया की प्रेरणा से कारागार खुल गया। वासुदेव जी बाल कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल चल दिए। रास्ते में यमुना जी प्रभु का चरण छूने के लिए व्याकुल हो गई। अंतर्यामी बाल-प्रभु यमुना के मन की बात समझ गए।

उन्होंने अपने चरण-स्पर्श से यमुना की व्यथा को दूर किया। वासुदेव जी ने नंद बाबा के घर जाकर अपने पुत्र को यशोदा जी के पास सुला दिया। उनकी नवजात कन्या लेकर वे कारागार में लौट आए।

बालक श्रीकृष्ण को पाकर नंद और यशोदा की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। यशोदा को पुत्र हुआ है, यह सुनते ही पूरे गोकुल में आनन्द छा गया। वहाँ भगवान अपनी बाल-लीला से यशोदा को नित्य रिझाते थे। उनकी वंशी की धुन पर सभी मोहित हो जाते थे। गोपियों के घरों से माखन चुराने के कारण वे ‘माखन चोर’ कहलाए।

श्री कृष्ण ने बचपन में ही खेल-खेल में पूतना, बकासुर, तृणावर्त आदि का विनाश किया। एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा कर इंद्र का घमंड चूर कर दिया।

एक दिन भगवान अपनी मित्र मंडली के साथ गेंद खेल रहे थे। गेंद यमुना में गिर गई। बालक श्री कृष्ण गेंद निकालने के लिए यमुना में कूद पड़े। यमुना में कालिया नाग रहता था, भगवान उसका मान-मर्दन कर उसके फन पर नृत्य करने लगे। इस प्रकार भगवान ने छोटी अवस्था में अनेक लीलाएं की।

कुछ समय बाद श्री कृष्ण अक्रूर जी के साथ गोकुल से मथुरा आए। वहाँ उन्होंने अपने परम भक्त सुदामा, माली और कुब्जा आदि पर कृपा की।

तदनन्तर भगवान ने लीला मात्र से कंस आदि असुरों का संहार कर अपने माता-पिता को बन्धन से छुड़ाया।

युद्ध के मैदान में अर्जुन को धर्म, कर्म और शाश्वत सत्य का उपदेश दिया। भगवान का वह अमर सन्देश गीता के रूप में आज भी जन-जन का कल्याण कर रहा है।

लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण को हम सब प्रणाम 🙏🙏 करते हैं।