हितोपदेश की कहानियाँ – कुटिनी की चतुराई

कुटिनी की चतुराई

एक पहाड़ पर घण्टाकर्ण नाम का राक्षस रहता था, वहां चारों ओर ऐसी खबर फैली हुई थी। अतः उस पहाड़ के आस पास रहने वाले सभी लोग उस ओर जाने से डरने लगे। सत्य बात तो यह थी कि एक बार एक चोर किसी का घंटा चुरा कर भाग रहा था कि एक बाघ ने उसे देख लिया और उसका पीछा करने लगा।

थोड़ी दूर जाकर ही उसने उसे धर दबौचा और मारकर खा गया। इसी छीना झपटी में चोर के हाथ से वह घंटा गिर गया। बाघ ने उस चोर का मांस खाया और वहां से वापस आ गया।

इसी बीच उधर से वानरों का एक दल आ रहा था, उन्होंने जैसे ही इतना बड़ा घंटा पड़ा देखा तो उसे उठा लिया। वानरों के स्वभाव के बारे में प्रसिद्ध है कि वे बड़े चंचल होते हैं। बस जबसे उनके हाथ यह घंटा लगा, वे सब मिलकर उसे जोर – जोर से बजाते रहते।

प्रतिदिन घंटे का स्वर सुनकर गांव वाले चकित रह गए। आखिर बार-बार घंटे का स्वर कहां से आता है? इस बात का कोई उत्तर उनके पास नहीं था। पहाड़ के जंगल में मनुष्य का खाया गया ढांचा मिलने पर लोगों ने यह अनुमान लगा लिया कि घण्टाकर्ण राक्षस अब घण्टा बजा-बजा कर प्राणियों को अपनी ओर आकर्षित करता है और खा जाता है। इस डर के मारे आस पास के सब ग्रामवासी अपने प्राण बचाने के लिए घर छोड़-छोड़ कर भागने लगे।

उस क्षेत्र के एक नगर में एक कुटिनी रहती थी। उसने घंटे की आवाज सुनी तो सोचने लगी कि यह घंटा तो समय असमय बजता ही रहता है। राक्षस कभी भी इस तरह से घंटा नही बजा सकता। इसके पीछे अवश्य ही कोई चाल है। लोग डर के मारे गांव छोड़ कर भाग रहे हैं। इन भागने वालों में से कोई भी यह सोचने और जानने की चेष्टा नहीं करता कि यह घंटा समय-असमय क्यों बजता रहता है? यह उस रहस्य को जानने के लिए पहाड़ की ओर चल पड़ी जहां से घंटे की आवाज आती रहती थी।

जैसे ही यह पहाड़ पर चढ़ने लगी, उसने वहां पर बंदरों का झुण्ड देखा। उनमें से एक बदर उठा और बड़े मजे से घंटा बजाने लगा। उसने घण्टा रखा तो दूसरा बंदर उस घंटे को बजाने लगा। कुटिनी समझ गई कि ये बंदर ही घंटा बजा – बजा कर लोगों को डरा रहे हैं।

कुटिनी मन ही मन बहुत खुश हुई और उसने सोचा कि इस विषय में सबसे पहले राजा को ही बताएगी।

बस उसी समय वह राजा के पास गई और जाते ही प्रणाम करके बोली- महाराज! जिस घंटाकर्ण राक्षस के कारण पहाड़ के पास रहने वाली जनता डरी हुई है मैं उसका रहस्य जान गई हूँ। यदि आप मुझे कुछ ईनाम दें तो मैं उस राक्षस को अपने वश में कर लूंगी।”

कुटिनी की बात सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसे यह पता था कि उस राक्षस के कारण ही उस क्षेत्र के लोग अपने अपने घर – बार छोड़कर के भाग रहे हैं। यदि यह कुटिनी उस राक्षस को वश में कर ले तो जनता में विश्वास पैदा होगा। यह सोचकर राजा ने कुटिनी को मुंह मांगा धन देने का वादा कर दिया। कुटिनी को पता था कि वानरों को फल बहुत प्रिय लगते हैं। इसलिए उसने बाजार से बहुत से फल खरीद लिए। उन फलों को लेकर उसने बन्दरों के आने-जाने के मार्ग के चारों ओर इधर-उधर बिखेर दिए।

बंदरों ने जैसे ही फल देखे, वे घंटा बजाना भूल गए और उन फलों की ओर लपके। किसी को भी उस घंटे की याद नहीं रही। वह तो फलों को देखते ही उन पर टूट पड़े। उधर कुटिनी इसी समय की प्रतीक्षा में थी। बस कुटिनी ने बगैर समय गंवाए चुपके से जाकर उस घंटे को उठा लिया।

वहां से भागती हुई कुटिनी सीधी राजा के पास गई और वह घंटा राजा के हाथों में देती हुई बोली-“महाराज! यह रहा आपका घंटाकर्ण राक्षस जिसके डर के मारे लोग अपने-अपने घर छोड़कर भाग रहे थे।”

राजा ने कुटिनी का यह साहस देखकर उसे बहुत सा पुरस्कार दिया। नगरवासियों को बुलाकर उस कुटिनी के साहस की कहानी सुनाई नगरवासी उस राक्षस से पीछा छूट जाने से बहुत खुश हुए। उन सबने मिलकर उस कुटिनी को बहुत धन्यवाद दिया।

इसीलिए कहा गया है कि हर चीज की वास्तविकता को समझना अति आवश्यक है।

शिक्षा – इस कहानी को पढ़कर यह शिक्षा मिलती है कि किसी भी बात का निर्णय करने से पहले अच्छी तरह सोच विचार कर करना चाहिए। किसी भी रहस्य की वास्तविकता जाने बिना न कोई निर्णय करना चाहिए और न किसी की बातों में आकर साहस खोना चाहिए।