अनुच्छेद लेखन : शिक्षार्थी के कर्तव्य
शिक्षार्थी के कर्तव्य
शिक्षा काल में अच्छा शिक्षार्थी और भविष्य का अच्छा नागरिक बनने के लिए हर शिक्षार्थी को कई प्रकार के विशेष कर्तव्यों का पालन करना आवश्यक है। शिक्षार्थी को अपने मन-मस्तिष्क के विकास और तरह-तरह के ज्ञान पाने के लिए पढ़ना-लिखना पड़ता है, जबकि शारीरिक विकास के लिए व्यायाम एवं खेलकूद करना भी अत्यावश्यक है। इसके साथ ही शिक्षार्थी को समय का पाबंद रहना भी उसका कर्तव्य माना गया है। इस प्रकार समय पर जागना, पढ़ना-लिखना, खाना-पीना, खेलना-कूदना, विद्यालय और घर के कामकाज करना आदि, हर बात में समय का ध्यान रखना आवश्यक होता है । अपनी आत्मा के विकास और विस्तार के लिए हर शिक्षार्थी का कर्तव्य हो जाता है कि वह पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त भी अच्छी-अच्छी पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का अध्ययन करता रहे। इस काल में व्यक्ति ज्ञान रूपी जितना भी धन अर्जित कर लेता है, वही आगामी जीवन में काम आता है। अस्तु, संयम का पालन करते हुए अनुशासित बनकर रहना भी शिक्षार्थी का कर्तव्य माना गया है। इसी प्रकार साफ़-सुथरे रहना, सत्संगति करना, बुरों और बुराइयों से बचना, सभी की सहायता के लिए तत्पर रहना, बड़ों के प्रति आदर और विनम्रता, छोटों के प्रति स्नेह-भाव, समवयस्कों के प्रति अपनापन जैसी बातें भी कर्तव्य के अंतर्गत ही आती हैं। सत्य बोलना, धर्म-कर्म पर आचरण करना, सत्कार्य के लिए सदैव तत्पर रहना, देश-जाति के भीतरी – बाहरी शत्रुओं पर ध्यान रखना, अन्य सभी नागरिकों के समान शिक्षार्थी का भी कर्त्तव्य होता है। शिक्षार्थी को वास्तव में शिक्षा का अंग मानते हुए उपयुक्त सभी कर्तव्यों के पालन के प्रति सावधान रहना चाहिए। उसे हर बात पर गहरी नज़र रखते हुए शिक्षा पाने के अपने परम और पहले कर्तव्य का निर्वाह करना चाहिए।