हितोपदेश की कहानियां – चालाक खरगोश
चालाक खरगोश
एक जंगल के साथ लगते पहाड़ की गुफा में रणधीर नाम का शेर रहता था। वह शेर हर रोज़ अपनी गुफा से जब बड़ी शान से निकलता तो जो भी पशु पक्षी सामने आ जाता उसे अपना शिकार बना डालता था। बेचारे जंगली जानवर अपने प्राण बचाने के लिए छिपते फिरते। शेर के हाथों से बचना कोई सरल कार्य थोड़े ही था।
कुछ ही दिनों में सारे जंगल में हाहाकार मच गया। सभी जानवर डर के मारे कांपते रहते। किसी को यह नहीं पता था कि उसका जीवन और कितने दिन बाकी है। इन स्थितियों को देखते हुए जंगल के सारे जानवरों ने अपनी एक सभा बुलाई, जिसमें यह निर्णय किया गया कि हम सब मिलकर शेर के पास चलते हैं और उससे यह पूछेंगे कि हम लोगों के जीवन के जितने दिन बाकी हैं, उतने दिन तो हम चिंता मुक्त होकर जी लें। हममें से प्रतिदिन एक जानवर तुम्हारे खाने के लिए आ जाया करेगा। जंगली जानवरों के इस निर्णय को शेर ने स्वीकार कर लिया और कहा यदि भोजन घर बैठे ही मिल जाए तो इससे बढ़िया बात और क्या हो सकती है।
उस दिन से शेर ने जानवरों को अंधाधुंध मारना छोड़ दिया। बस प्रतिदिन उसकी गुफा में एक जानवर आ जाता, जिसे खाकर शेर अपना पेट भर लेता।
इस प्रकार से बारी-बारी बेचारे जानवर अपने जीवन से हाथ धोने लगे।
एक दिन एक खरगोश की बारी आ गई। मृत्यु का डर किसे नहीं होता? बेचारा खरगोश धीरे-धीरे चलता हुआ शेर की गुफा की ओर जा रहा था। रास्ते में यह भी सोचता जा रहा था कि किस उपाय से उसके प्राण बच सकते हैं ?
शेर तक पहुंचते-पहुंचते खरगोश की बुद्धि में अपने प्राण बचाने की युक्ति आ ही गई।
जैसे ही खरगोश शेर के पास पहुंचा तो शेर गरज कर बोला- “तुम इतनी देर से क्यों आए हो, तुम्हें पता नहीं कि हम भूखे होंगे। “महाराज! मैं आप तक पहुंच गया हूं, यही बड़ी बात है। मुझे तो आशा ही नही थी कि आज आपका भोजन बन पाऊंगा अथवा उसका…..।”
“उसका किसका ?” शेर क्रोध से भड़क उठा।
“महाराज ? जब मैं आपके पास आ रहा था तो रास्ते में मुझे एक और शेर मिल गया। उसने मुझे जैसे ही खाना चाहा तो मैंने उससे कहा – देखो, महाराज, मैं पहले अपने राजा के पास जाऊंगा। फिर जो आपकी इच्छा हो करना। बस उससे थोड़ा सा समय उधार मांग कर आप तक आया हूं। उसने मुझसे कहा है कि यदि तुम जल्दी न आए तो मैं वहीं आकर तुम्हें और तुम्हारे राजा दोनों को खा जाऊंगा।”
हैं… इस जंगल में आकर उसकी यह हिम्मत!! हमें ललकार रहा है ?… चलो, पहले हम उसे ही देखते हैं कि यह कितना बहादुर है। कहते हुए शेर खरगोश के साथ चल पड़ा।
खरगोश ने रास्ते में आते समय पहले से ही कुआं
देख लिया था जिसे देखकर उसके दिमाग में युक्ति आई थी। कुएं के पास आकर खरगोश रुक गया।
“कहा है वह शेर ?” शेर ने दहाड़ते हुए पूछा।
“महाराज, यह रहा उसका घर।” इस कुएं के अन्दर ।
दूर से ही खरगोश ने शेर को संकेत किया। शेर उसी समय कुएं की मुंडेर पर खड़ा होकर झांकने लगा।
नीचे उसे अपना ही अक्स दिखाई दिया। भूखे शेर को क्या पता था कि नीचे उसकी अपनी ही छाया है। वह तो क्रोध में पागल हो रहा था। उसी समय उसने गरज कर उस शेर पर आक्रमण करते हुए कुएं में छलाग लगा दी। बस फिर क्या था। शेर ने कुएं में गिरते ही दम तोड़ दिया।
खरगोश खुशी-खुशी अपने साथियों के पास वापस आया तो वे सब चकित हो रह गए कि यह बचकर कैसे आ गए? खरगोश ने जैसे ही शेर के मरने की सूचना अपने साथियों को सुनाई तो वे सब खुशी से नाच उठे। इसलिए कहते हैं कि जिसके पास बुद्धि है, शक्ति उसी के पास है। बुद्धिहीन के पास शक्ति नही होती, होती भी है तो वह सब बेकार। बुद्धि ही बलवान है।
शिक्षा : इस कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि बुद्धि ही शक्ति है। जिसके पास बुद्धि है, वह छोटा होते हुए भी बलवान है और जिसके पास बुद्धि नहीं, वह बलवान होते हुए भी शक्तिहीन है, निर्बल है तथा शेर की भांति क्रोध बुद्धि हर लेता है।