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हितोपदेश की कहानियाँ – शिकारी

शिकारी

एक शहर में बहुत चालाक शिकारी रहता था। उसे हिरण का शिकार करने का बहुत शौक था। एक बार वह मृग की तलाश में घने जंगल में चला गया। रास्ते में उसे बहुत बड़ा सुअर दिखाई दिया। फिर भी उसने पहले तो मृग का शिकार किया। क्योंकि उसे पता था कि यह सुअर भागने वाला नहीं है।

मृग का शिकार करके शिकारी ने उसे अपने कंधे पर डाला और फिर सुअर का शिकार करने चल पड़ा। वह मन ही मन में सोच रहा था कि चलो, आज तो कई दिनों तक का धंधा हो जाएगा। आज सुअर और मृग दोनों का मांस उसके लिए कई दिनों तक के लिए पर्याप्त होगा। केवल यही नहीं, वह इससे अपने मित्रों को भी भोज दे सकेगा।

जब सुअर उसे दिखाई दे गया तो उसने मृग को अपने कंधे से उतार कर एक वृक्ष के नीचे रख दिया और सुअर पर तीर चलाया।

जैसे ही तीर सुअर की छाती पर लगा, वह क्रोध से भरकर शिकारी पर झपटा। सुअर के शरीर में बाण बहुत गहरा फंसा हुआ था। जिसके कारण बहुत खून बह रहा था। किन्तु फिर भी वह मरने से पूर्व अपने शत्रु से बदला लेना चाहता था। मनुष्य की जब मृत्यु होनी होती है तो उसके लिए कोई बहाना ही चाहिए। किसी न किसी बहाने मृत्यु प्राणी को अपने साथ ले जाती है।

यही हाल उस समय उस शिकारी का हुआ। सुअर ने क्रोध में अंधा होकर उस पर इतना प्रबल आक्रमण किया कि शिकार धरती पर चित गिर गया। धरती पर गिरते ही उसके से मुंह अंतिम चीख निकली।

सुअर भी उस शिकारी के साथ ही तड़पने लगा था। उसका भी अंतिम समय आ गया। दोनों की लड़ाई से घबराकर वृक्ष की जड़ में रहने वाला साँप जैसे ही बाहर निकला, वह सुअर के पांव के नीचे आकर मर गया।

इस प्रकार उस वृक्ष के नीचे चार शव पड़े थे। एक शिकारी का, दूसरा मृग का, तीसरा सुअर का और चौथा सांप का। संयोग से एक गीदड़ वहां आ निकला। उसने चार शव इकठ्ठे पड़े देखे तो चकित रह गया। फिर मन ही मन प्रसन्न होते हुए वह सोचने लगा कि ऐसा भाग्यशाली अवसर तो जीवन में बहुत कम आता है कि किसी को एक नहीं चार-चार शिकार एक साथ मिले हों। लगता है भगवान ही मुझ पर दयालु हैं, जो मेरे लिए कई दिनों का भोजन एक साथ उपलब्ध करा दिया।

इनमें से किसे, किस प्रकार और कब खाया जाए?

यदि कोई वस्तु किसी भी प्राणी को आवश्यकता से अधिक मिल जाए तो उसके लिए उसे संभालना एक समस्या बन जाती है। यही दशा उस समय गीदड़ की हो रही थी। वह अपने में ही उलझा हुआ था। वृक्ष के नीचे बैठा वह कितनी देर तक यही सोचता रहा। अंत में इसी निर्णय पर पहुंचा कि पहले एक मास तक इस मनुष्य के मांस से काम चलाया जाए। दूसरे मास में मृग और सुअर का मांस खाना आरम्भ किया जाएगा। जब इन तीनों का मांस समाप्त हो जाएगा तो एक दिन तो सांप का मांस भी चल जाएगा। रही आज की बात तो वह इस मनुष्य की डोरी से ही अपना काम चला लेगा। यह भी तो चमड़े की ही बनी है।

लालची गीदड़ ने यह सोचकर अपने तेज़ दांतों से उस डोरी (तांत) को जैसे ही काटा उसके कटते ही धनुष की लकड़ी बिजली की सी गति से टूटकर सीधी गीदड़ की छाती में धंस गई। इससे पहले की गीदड़ सांस ले पाता, लकड़ी उसके शरीर के आर-पार निकल गई। अब वहीं पर पांचवां शव गीदड़ का भी धरती पर दिखाई देने लगा।

शिक्षा : इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि इंसान को अधिक लालच नहीं करना चाहिए।

जैसा कि कहानी से स्पष्ट है कि यदि शिकारी सुअर का लालच न करता तो जान से हाथ नहीं धोना पड़ता। यदि गीदड़ महीनों का हिसाब न लगाकर हिरण का नर्म मांस खाकर चला जाता उसे भी जान से हाथ नहीं धोना पड़ता।

अतः लालच को अपने जीवन में कभी कोई स्थान न दें।