प्रश्न. ‘सपनों के से दिन’ पाठ के लेखक और ‘टोपी शुक्ला’ नामक पात्र का बचपन एक जैसा सा है। आपके बचपन से इनकी कथा कैसे मिलती – जुलती है?
उत्तर – ‘सपनों के से दिन’ पाठ के लेखक के मित्र राजस्थान व हरियाणा से आए परिवारों के थे जिनकी बोली भी कम समझ में आती थी लेकिन मित्रता कोई भेद-भाव नहीं जानती। बचपन में लेखक उनके साथ खूब मौज-मस्ती करता। खेलते-दौड़ते में यदि चोट लग जाती तो घर आने पर डाँट पड़ती। लेकिन अगले दिन फिर उन्हीं मित्रों के साथ खेलने लग जाता। लेखक अध्यापकों से सदा भयभीत रहा तथा परिवार से विशेष अपनापन नहीं मिला। वहीं ‘टोपी शुक्ला’ पाठ में टोपी को भी अपने मुस्लिम मित्र व उसकी दादी से ही बचपन में अपनापन मिला। घरवाले इफ़्फ़न से मिलने पर डाँटते रहे लेकिन मित्रता भेद-भाव नहीं जानती। वह फिर भी उसके पास जाता। स्कूल में अध्यापक के दुर्व्यवहार से टोपी आहत रहता। इस तरह दोनों का बचपन एक जैसा रहा।
मैं भी अपने बचपन में खूब खेलता था। स्कूल के दिन बहुत मस्ती भरे लगते थे क्योंकि मैं अपने मित्रों के साथ खूब मौज-मस्ती करता था। चोट भी लगती थी। इस कारण अपने अभिभावकों से डर भी लगता था। पढ़ाई में कम रुचि के कारण अपने अध्यापकों से भी डर लगता था। लेकिन इसके बाद भी मैं मित्रों के साथ खेलने जरूर जाता, चाहे वे किसी भी धर्म के थे।
प्रश्न. लेखक को स्कूल जाने के नाम से उदासी क्यों आती थी? ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। आपको स्कूल जाना कैसा लगता है और क्यों ?
उत्तर – ‘सपनों के दिन’ पाठ में लेखक को स्कूल जाने के नाम पर उदासी आ जाती थी। इस उदासी के अनेक कारण थे। उस समय के अभिभावक अपने बच्चों को अधिक पढ़ाना नहीं चाहते थे। लेखक के अधिकतर मित्र स्कूल न जाकर खेल-कूद में समय बिताया करते थे। यह देखकर लेखक का भी मन खेलने के लिए ललचाया करता था। अन्य कारणों में गृह कार्य की अधिकता अध्यापकों से मार खाने का भय भी लेखक को स्कूल नहीं जाने के लिए प्रेरित करता था। लेखक के पिता नई श्रेणी के लिए नई पुस्तक न देकर हेडमास्टर द्वारा दी गई पुरानी पुस्तकों को पढ़ने के लिए कहते थे। स्कूल जाने के प्रति अरुचि पैदा करने में यह भी एक मुख्य कारण था। इन सबके विपरीत मुझे स्कूल जाना अच्छा लगता है। इसका सबसे बड़ा कारण आजकल के पाठ्यक्रम में खेल-कूद का समावेश होना है। अब स्कूलों में केवल पढ़ने की बात नहीं होती अपितु खेल-कूद को भी समान महत्व दिया जाता है।
प्रश्न. ‘सपनों के से दिन’ कहानी के आधार पर पी.टी. साहब के व्यक्तित्व की दो विशेषताएँ बताते हुए लिखिए कि स्काउट परेड के समय लेखक स्वयं को महत्त्वपूर्ण आदमी, एक फौजी जवान क्यों समझता था?
उत्तर – पी. टी. साहब के व्यक्तित्व की विशेषताएं निम्नलिखित हैं :-
1. कठोर अनुशासन प्रिय – पी.टी.साहब मास्टर प्रीतमचन्द का व्यक्तित्व भयभीत करने वाला था। वे कठोर अनुशासन – प्रिय थे। वे छात्रों को अपने अनुशासन से भयभीत रखते थे। स्काउट परेड में प्रार्थना के समय वे किसी की शासनहीनता सहन नहीं करते थे व छात्रों को दंड दे देते थे।
2. कोमल हृदयी – पी.टी. सर बाहर से कठोर किन्तु हृदय से कोमल थे। उन्होंने घर में तोते पाल रखे थे। जब उनको स्कूल से मुअत्तल कर दिया गया, तब वे अपने तोतों से बात करते व उन्हें भीगे हुए बादाम खिलाते थे।
स्काउट परेड करते समय लेखक स्वयं को महत्त्वपूर्ण आदमी, एक फौजी जवान इसलिए समझता था, क्योंकि जब वह स्काउट की वर्दी पहनकर, गले में रंगीन रूमाल डालकर झंडियाँ हिलाते हुए, परेड करता था तो उसे एक फौजी ज़वान की-सी शान अनुभव होती थी। उसके मन में परेड की छवि बस गई थी। उसे छोटे बूटों की एड़ियों पर लेफ्ट-राइट, राइट टर्न या लेफ्ट टर्न या अबाउट टर्न करते हुए बूटों की ठक-ठक से आगे बढ़ना अच्छा लगता था।
प्रश्न. “स्कूल हमारे लिए ऐसी जगह न थी जहाँ खुशी से भागे जाएँ” फिर भी लेखक और साथी स्कूल क्यों जाते थे? आज के स्कूलों के बारे में आपकी क्या राय है? क्यों? विस्तार से समझाइए।
उत्तर – “स्कूल हमारे लिए ऐसी जगह न थी जहाँ खुशी से भागे जाएँ’ ‘सपनों के से दिन’ पाठ में लेखक को बचपन में स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि उसे कक्षा कार्य व अध्यापक द्वारा सिखाए गए सबक कभी याद नहीं होते थे और न ही उसे गृह कार्य में रुचि थी। फिर भी स्काउटिंग का अभ्यास करते समय उन्हें स्कूल अच्छा लगने लगता था। जब नीली-पीली झंडियाँ पी. टी. साहब की सीटी पर या वन-टू-थ्री कहने पर झंडियाँ ऊपर-नीचे या दाएँ-बाएँ करते थे तो उन्हें बहुत अच्छा लगता था। खाकी वर्दी और गले में दोरंगा रूमाल लटकाना भी उन्हें अच्छा लगता था। विशेष रूप में पी.टी. मास्टर उन्हें शाबाशी देते तो उन्हें स्कूल बहुत अच्छा लगने लगता था। साथ ही स्कूल जाते समय रास्ते में खड़े अलियार की झाड़ियों से आती सौंधी महक बहुत अच्छी लगती। स्कूलों के बारे में मेरी राय है कि शारीरिक दंड पर रोक लगाना बहुत आवश्यक कदम है। बच्चों को विद्यालय में शारीरिक दंड से नहीं अपितु मानसिक संस्कार द्वारा अनुशासित करना चाहिए। इसके लिए पुरस्कार, प्रशंसा, निंदा आदि उपाय अधिक ठीक रहते हैं क्योंकि डर से बच्चा कभी भी अपनी समस्या अपने शिक्षक के समक्ष रख नहीं पाता है। उसे सदैव यह भय सताता रहता है कि यदि वह अपने अध्यापक को अपनी समस्या बताएगा तो उसके अध्यापक कहीं उसकी पिटाई न कर दें जिसके कारण वह बच्चा दब्बू किस्म का बन जाता है। इसके स्थान पर यदि उसे स्नेह से समझाया जाएगा तो वह सदैव अनुशासित रहेगा और ठीक से पढ़ाई भी करेगा और वह नियम से रोजाना विद्यालय आएगा।
प्रश्न. ‘सपनों के से दिन’ पाठ में पीटी सर की किन चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख किया गया है? वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में स्वीकृत मान्यताओं और पाठ में वर्णित युक्तियों के सम्बन्ध में अपने विचार जीवन मूल्यों की दृष्टि से व्यक्त कीजिए।
उत्तर – पी.टी. सर की चारित्रिक विशेषताएँ :
1. रौबदार व्यक्तित्व – पी. टी. सर का व्यक्तित्व बहुत रौबदार था। वे स्कूल के समय में कभी भी मुस्कुराते नहीं थे। माता के दागों से भरा चेहरा तथा बाज-सी तेज़ आँखें, खाकी वर्दी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले बूट, सभी कुछ रौबदार व भयभीत करने वाला था।
2. कठोर अनुशासन प्रिय – पी. टी. मास्टर बहुत कठोर थे। वह छात्रों को अनुशासन में लाने के लिए बहुत कठोर और क्रूर दण्ड दिया करते थे। छात्रों को घुड़की देना, ठुढ्डे मारना, उन पर बाज की तरह झपटना, उनकी खाल खींचना उनके लिए बाएँ हाथ का खेल था।
3. स्वाभिमानी – पी.टी. मास्टर का सिद्धांत है कि लड़कों को डाँट-डपट कर रखा जाए। इसलिए चौथी कक्षा के बच्चों को मुर्गा बनाकर कष्ट देना उन्हें अनुचित नहीं लगता। अतः जब हैडमास्टर उन्हें कठोर दण्ड देने पर मुअत्तल कर देते हैं तो वह गिड़गिड़ाने नहीं जाते।
4. बाहर से कठोर किन्तु कोमल हृदय – पी.टी. सर बाहर से कठोर किन्तु हृदय से कोमल थे। उन्होंने घर में तोते पाल रखे थे। जब उनको स्कूल से मुअत्तल किया गया, तब वे अपने तोतों से बात करते व उन्हें भीगे हुए बादाम खिलाते थे। स्काउट परेड अच्छी करने पर छात्रों को शाबाशी भी देते थे।
मेरे विचार से, शारीरिक दंड पर रोक लगाना बहुत आवश्यक कदम है। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में शारीरिक दंड को स्वीकृत मान्यता प्राप्त नहीं है। शिक्षकों को छात्रों को पीटने का अधिकार नहीं है।
बच्चों को विद्यालय में शारीरिक दंड से नहीं अपितु मानसिक संस्कार द्वारा अनुशासित करना चाहिए। इसके लिए पुरस्कार, प्रशंसा, निंदा आदि उपाय अधिक ठीक रहते हैं, क्योंकि शारीरिक दण्ड के भय से बच्चा कभी भी अपनी समस्या अपने शिक्षक के समक्ष नहीं रख पाता है। उसे सदैव यही भय सताता रहता है कि यदि वह अपने अध्यापक को अपनी समस्या बताएगा, तो उसके अध्यापक उसकी कहीं पिटाई न कर दें जिसके कारण वह बच्चा दब्बू किस्म बन जाता है। इसके स्थान पर यदि उसे स्नेह से समझाया जाएगा, तो वह सदैव अनुशासित रहेगा और ठीक से पढ़ाई करेगा।
प्रश्न. ‘सपनों के से दिन’ पाठ में हेडमास्टर शर्मा जी की बच्चों को मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति क्या धारणा थी? जीवन मूल्यों के संदर्भ में उसके औचित्य पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर – हेडमास्टर शर्मा जी बच्चों को मारने-पीटने वाले अध्यापकों को गलत मानते थे। उनका विचार था कि ऐसे अध्यापकों के कारण विद्यार्थियों में शिक्षा के प्रति अरुचि उत्पन्न होगी तथा बच्चों का विकास बाधित होगा। यही नहीं मार-पीट करने से बच्चों के मन में अध्यापकों के प्रति अनादर का भाव भी पनपेगा, बच्चे हर समय भयभीत रहेंगे। अतः विद्यालय में किसी बच्चे के साथ किसी भी अध्यापक को मार-पीट नहीं करनी चाहिए। विद्यालय व्यवस्था में शारीरिक दंड का कोई औचित्य नहीं है।
प्रश्न. ओमा कौन था? उसकी क्या विशेषता थी?
उत्तर – ओमा छात्र नेता था। उसका शरीर विचित्र साँचे में ढला हुआ था। वह ठिगना और हट्टा-कट्टा बालक था, परन्तु उसका सिर बहुत बड़ा था। उसे देखकर यूँ लगता था मानो किसी बिल्ली के बच्चे के माथे पर तरबूज रखा है। उसकी आँखें नारियल जैसी और चेहरा बंदरिया जैसा था। उसका सिर इतना बड़ा था कि वह लड़ाई में सिर से भयंकर चोट करता था। उसकी चोट से लड़ने वाले की पसलियाँ टूट जाती थीं। बच्चे उसके सिर के वार को रेल-बंबा कहते थे। वह स्वभाव से लड़ाका तथा मुँहफट था।
प्रश्न. ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि अभिभावकों को बच्चों का अधिक खेलकूद करना पंसद क्यों नहीं आता? छात्र जीवन में खेलों का क्या महत्व है? इनसे हमें किन गुणों की प्रेरणा मिलती है?
उत्तर – प्राय: अभिभावक बच्चों की खेलकूद में ज्यादा रुचि लेने पर इसलिए रोक लगाते हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि बच्चे ज्यादा-से-ज्यादा पढ़ाई करें। परीक्षा में अच्छे अंक लाएँ। वे खेलों में समय लगाने को समय की बरबादी मानते हैं। उन्हें लगता है कि वे खेलों में ही लगे रहेंगे तो वे पढ़ाई नहीं कर पाएँगे। इससे वे उन्नति नहीं कर पाएँगे।
बच्चों के लिए जितनी पढ़ाई आवश्यक है, उतनी ही आवश्यकता खेलों की भी है। खेलों के कारण उनके जीवन में रुचि बढ़ती है। खेलों से मानसिक शक्ति तथा अच्छे स्वास्थ्य का विकास होता है। मन में साहस, हिम्मत, अनुशासन प्रियता और सहनशीलता आती है। अतः खेल जीवन के लिए जरूरी है।
प्रश्न. ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि अभिभावक बच्चों की पढ़ाई को व्यर्थ क्यों समझते थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाना – लिखाना नहीं चाहते थे। यहाँ तक कि परचून वाले दुकानदार और आढ़ती भी अपने बच्चों को बहीखाता लिखना-सिखाना काफी समझते थे। उनमें प्रगति की इच्छा नहीं थी। अत: गाँव के अनेक बच्चे स्कूल नहीं जाते थे और जो जाते थे उन्हें स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था। उनका मानना था कि उनके बच्चे हिसाब-किताब करना सीख लें; वही काफ़ी है क्योंकि आगे चलकर उन्हें अपना पैतृक व्यवसाय ही तो संभालना है। यही कारण था कि अभिभावकों को अपने बच्चों की पढ़ाई में रुचि नहीं थी और न ही वे उन्हें स्कूल जाने की जिद करते थे और न ही खेलने से रोकते थे।