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बुद्धावतार

आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले पृथ्वी पर हिंसा बढ़ गई थी। धर्म के नाम पर निर्दोष पशुओं का वध हो रहा था। तब जीवों की हत्या रोकने के लिए माया देवी के गर्भ से भगवान स्वयं बुद्ध के रूप में अवतरित हुए।

उनके पिता का नाम शुद्धोधन था। उनकी राजधानी कपिलवस्तु थी। भगवान बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ के जन्म के बाद उनकी माता का देहांत हो गया। सिद्धार्थ का पालन-पोषण उनकी विमाता गौतमी देवी ने किया।

ज्योतिषियों ने कहा था कि राजकुमार या तो चक्रवर्ती राजा होंगे या विरक्त होकर जगत का कल्याण करेंगे। महाराज शुद्धोधन ज्योतिषियों की इस बात से चिंतित रहते थे। उन्होंने राजकुमार के लिए बहुत बड़ा भवन बनवा दिया था। उस भवन में दुःख, रोग और मृत्यु की कोई बात न पहुंचे – इसकी कड़ी व्यवस्था कर दी थी। राजकुमार का विवाह राजकुमारी यशोधरा से हुआ था। उनके पुत्र का नाम राहुल था।

राजकुमार सिद्धार्थ अत्यंत दयालु थे। एक बार उन्होंने पिता से नगर देखने की आज्ञा मांगी। राज्य की ओर से ऐसी व्यवस्था हो गई कि राजकुमार को नगर में कोई दुःखद दृश्य दिखाई न दे। लेकिन होनी को कौन रोक सकता है। नगर घूमते समय एक बूढ़ा आदमी सिद्धार्थ को दिखाई पड़ा।

इसी प्रकार जब वे दूसरी बार घूमने निकले तो एक रोगी उन्हें मिला। तीसरी बार एक मुर्दा उन्होंने देखा। इन दृश्यों को देखकर संसार के सब सुखों से उनका मन हट गया।

संसार के सुखों से वैराग्य हो जाने पर अमरता की खोज का सिद्धार्थ ने निश्चय कर लिया। एक दिन आधी रात को वे चुपचाप राजभवन से निकल पड़े। वन में कठोर तप करने लगे। अंत में वे ज्ञान-बोध को प्राप्त करके सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध हो गए।

भगवान बुद्ध कहते थे –”संसार दुःखमय है। संसार के पदार्थों को पाने की तृष्णा ही दुःख का कारण है। तृष्णा का सर्वथा नाश होने से दुःख का नाश होता है। राग, द्वेष और अहंकार को छोड़ देने से ही जीव की मुक्ति होती है।”

सत्य, नम्रता, सदाचार, सदविचार, सद्गुण, सद्बुद्धि, ऊंचा लक्ष्य और उत्तम ध्यान – ये आठ साधन भगवान बुद्ध ने मनुष्य की उन्नति के लिए बताए थे

इस प्रकार उन्होंने संसार में घूम-घूमकर मानव धर्म का खूब प्रचार किया। यज्ञ में पशु-वध को रोका। जीवों के प्रति प्रेम,अहिंसा और सद्भाव का अमर सन्देश दिया। आज भी भगवान बुद्ध के सन्देश जन-जन के लिए कल्याणकारी हैं।

अहिंसा के अवतार भगवान बुद्ध को हम सब प्रणाम 🙏🙏 करते हैं।