प्रार्थना

यह ‘आत्मत्राण’ के एक बांग्ला गीत अथवा कविता का हिंदी अनुवाद है। इसे प्रार्थना कहें तो अधिक उपयुक्त होगा। ये कवि रवींद्र की विश्वप्रसिद्ध कृति गीतांजलि में भी संकलित है।


इस रचना की बांग्ला भाषा में प्रारंभिक पंक्तियां हैं-

‘बिपदे मोरे रक्षा करो ए नहे मोर प्रार्थना,

बिपदे आमि ना येन करि भय’।

अर्थात

‘हे प्रभु! विपत्तियों में मेरी रक्षा करो मेरी ये प्रार्थना नहीं है,

अपितु विपत्तियों में मैं भयभीत न होऊं मुझे केवल यही वरदान दो।’

कवि आगे कहता है-

‘हे ईश्वर ! मेरे पीड़ा से व्यथित चित्त को सांत्वना दो मैं ये नहीं कहता,

पर अपने दुखी चित्त पर विजय पा सकूं ऐसा आशीर्वाद अवश्य दो।

संसार-सागर में डूबने से मुझे बचा लो मैं ऐसा नहीं चाहता,

मैं तो बस संसार सागर में तैरते और उसमें रहने की शक्ति मांगता हूं।’

‘हे प्रभु! मैं दुखों के समय तुझ पर संशय न करूं अपितु तुझ पर मेरा विश्वास अडिग रहे ऐसा वरदान दो।’


प्रार्थना वास्तव में हमारी इच्छाओं अथवा मनोभावों का ही एक रूप है। जब हम शांत – स्थिर होकर उन्हें अपने मन में अथवा बोलकर दोहराते हैं तो हमारी वही इच्छाएं प्रार्थना का रूप ले लेती हैं। प्रातःकालीन प्रार्थना चित्त को शांत और एकाग्र करती है।