पत्र – लेखन
पत्र – लेखन (Letter-Writing)
आम लोगों की यह धारणा है कि पत्र लिखने में किसी तरह का कोई प्रयास नहीं करना पड़ता है, लेकिन वास्तव में पत्र- लेखन भी एक कला है। यही वह माध्यम है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने स्वजन-परिजनों के बीच अपने हृदयगत भावों की अभिव्यक्ति करके संतोष प्राप्त करता है। यही वह साधन है, जिसके माध्यम से दूसरों के दिलों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। अतः पत्र लिखना एक ऐसी कला है, जिसके लिए बुद्धि और ज्ञान की परिपक्वता, विचारों की विशालता, विषय का ज्ञान, अभिव्यक्ति की शक्ति और भाषा पर नियंत्रण की आवश्यकता है। इसके बिना हमारे पत्र अत्यंत साधारण होंगे। वे किसी को प्रभावित भी नहीं कर पाएँगे और हमारी अल्प बुद्धि का प्रतीक भी बन जाएँगे। पत्र केवल हमारे कुशल समाचारों के आदान-प्रदान का ही माध्यम नहीं हैं, बल्कि उनके द्वारा आज के वैज्ञानिक युग में संपूर्ण कार्य-व्यापार चलता है। व्यावसायिक क्षेत्र में भी आज पत्रों का महत्त्व बहुत बढ़ता जा रहा है। पत्र-व्यवहार, व्यवसाय का एक अनिवार्य अंग बन गया है, इसलिए पत्र लेखन में अत्यंत सावधानी रखनी चाहिए। पत्र लिखने तथा उसके आकार-प्रकार की पूरी जानकारी आज के संदर्भ में अत्यंत आवश्यक है।
पत्र-लेखन की विशेषताएँ
1. सरलता – पत्र की भाषा सरल, सीधी, स्वाभाविक तथा स्पष्ट होनी चाहिए। इसमें कठिन शब्द या साहित्यिक भाषा का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। उलझी हुई, अस्पष्ट तथा जटिल भाषा के प्रयोग से पत्र नीरस और प्रभावहीन बन जाता है।
2. स्पष्टता – सरल भाषा-शैली, शब्दों का चयन, वाक्यरचना की सरलता पत्र को प्रभावशाली बनाती है। पत्र में स्पष्टता लाने के लिए अप्रचलित शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
3. संक्षिप्तता – आज मनुष्य अधिक व्यस्त रहता है, वह पत्र पढ़ने में अधिक समय देना नहीं चाहता, विशेषकर व्यावसायिक पत्र में। पत्रों में अनावश्यक विस्तार नहीं होना चाहिए।
4. आकर्षकता – व्यावसायिक पत्र सुंदर तथा आकर्षक होने चाहिए। लिखते समय स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
5. मौलिकता – मौलिकता पत्र की विशेषता होती है, पत्र में घिसे-पिटे वाक्यों के प्रयोग से बचना चाहिए। पत्र – लेखक को पत्र में स्वयं के विषय में कम तथा प्राप्तकर्ता के विषय में अधिक लिखना चाहिए।