पञ्चमाक्षर
हम संस्कृत के शब्दों में अक्सर इस तरह के शब्द देखते हैं।
महामृत्युञ्जय
सङ्घ
अङ्क
गङ्गा
धनञ्जय
पञ्चाङ्ग
पञ्चाक्षर
शङ्कर
जिन शब्दों को देखकर हम सोच में पड़ जाते हैं, वे पञ्चमाक्षर हैं। वास्तव में हम उच्चारण पञ्चमाक्षर का ही करते हैं। लेकिन इसके लिए हमें स्कूल के आरम्भ से ही पञ्चमाक्षर की जगह अनुस्वार का प्रयोग सिखा दिया जाता है। हमने भी उसी को मान लिया और वही हमारे व्यवहार में उपयोग किया जाने लगा।
परन्तु जब हम संस्कृत के श्लोक पढ़ते हैं तो इस तरह के शब्द देखने को मिलते हैं :
अञ्जन
सङ्घर्ष
काञ्चन
मङ्गल
हिन्दी संस्कृत भाषा से निकली है, इसलिए संस्कृत के कुछ न कुछ नियम इस पर लागू होते हैं, भले ही लोग स्वीकार न करें।
अनुस्वार और पञ्चमाक्षर में क्या अन्तर है ?
पहले यह जान लेते हैं कि पञ्चमाक्षर कौन कौन से हैं।
क ख ग घ ङ
ङ ‘क’ वर्ग का पञ्चमाक्षर है अर्थात पाँचवाँ अक्षर है।
च छ ज झ ञ
ञ ‘ च’ वर्ग का पञ्चमाक्षर है अर्थात पाँचवाँ अक्षर है।
ट ठ ड ढ ण
ण ‘ ट ‘ वर्ग का पञ्चमाक्षर है अर्थात पाँचवाँ अक्षर है।
त थ द ध न
न ‘त ‘ वर्ग का पञ्चमाक्षर है अर्थात पाँचवाँ अक्षर है।
प फ ब भ म
म ‘ प ‘ वर्ग का पञ्चमाक्षर है अर्थात पाँचवाँ अक्षर है।
क वर्ग के बहुत से पञ्चमाक्षर हैं, जिनका आज के समय में अनुस्वार देकर प्रयोग किया जाता है। परन्तु वास्तव में उन शब्दों में पञ्चमाक्षर का प्रयोग होना चाहिए ; क्योंकि हम वास्तव में पञ्चमाक्षर का ही उच्चारण करते हैं, अनुस्वार का नहीं।
अङ्क
मयङ्क
शङ्कर
शङ्ख
रङ्ग
उमङ्ग
विहङ्गम
सङ्घ
उपरोक्त शब्द आज के समय में अंक, मयंक, शंकर,शंख, रंग, उमङ्ग, विहंगम, संघ।
वर्तमान समय में पञ्चमाक्षर का प्रयोग नहीं किया जाता तो कुछ लोग ङ को ड समझ लेते हैं।