निबंध लेखन : मेरी चिर अभिलाषा
मेरी चिर अभिलाषा
प्रस्तावना – बहुत दिन बीते। एक दिन की बात है, मैं उस समय छोटा था। तीसरे या चौथे दर्जे में पढ़ता था। बचपन से ही महत्त्वाकांक्षाओं के सुनहले चित्र मेरी आँखों के सामने नाचा करते थे। मैं विद्यालय से लौटा। संध्या का समय था। भूख के मारे पेट पीठ से लग रहा था। मैं घर की ओर दौड़ पड़ा। देखा, बड़े भाई साहब काशी से पधारे हैं। वे पिता जी से बातें कर रहे थे। उन्होंने मुझे बुलाया। मैंने जाकर श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। उन्होंने मुझसे मेरी शिक्षा के विषय में पूछा। मैंने उनके प्रश्नों का यथायोग्य उत्तर दिया। उन्होंने मुझसे पूछा, “नरेंद्र, तुम क्या बनना चाहते हो ?” मैंने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया, “मैं आपके ही समान विद्वान बनना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि मेरी विद्वता की कीर्ति फैले।” उन्होंने मेरी मनोकामना की पूर्ति के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की। वे शब्द मुझे आज ज्यों-के-त्यों याद हैं और वे ही मुझे उन्नति के पथ की ओर ले जा रहे हैं।
विद्वान बनने के लिए विस्तृत और विशद अध्ययन की आवश्यकता है। मैंने भी विद्या प्राप्त करने की प्रतिज्ञा कर ली । मुझे पढ़ने की धुन सवार हो गई। लक्ष्य को पाने के लिए साधन की आवश्यकता होती है। मेरे लक्ष्य का एकमात्र साधन है अध्ययन।
सफलता के लिए सुखों का त्याग : सफलता प्राप्त करने के लिए सुख का सर्वथा त्याग कर देना पड़ता है। सुख का सच्चा अनुभव दुःख के अनंतर होता है। दुःख के पीछे जो सुख मिलता है, वह बड़ा रसीला होता है। पेड़ की छाया उसी मनुष्य को अच्छी लगती है, जो धूप में तपकर आया हो। सिद्धि के लिए संयम, नियम और तप आवश्यक है। मैं भी अपने लक्ष्य-सिद्धि के वैज्ञानिक, लिए संयमित, नियमित और त्यागमय जीवन बिताने का प्रयास करता हूँ। मैं विपत्तियों और दुःखों की गर्जना से भयभीत नहीं हो जाता। मैं बार-बार दुहराता रहता हूँ। विद्यार्थी को सुख और सुखार्थी को विद्या दुर्लभ है।
उत्साह, धैर्य और आत्मविश्वास – उत्साह, धैर्य और आत्मविश्वास के सहारे मैं अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाता हुआ चला जा रहा हूँ। विकास के यही तीन प्रमुख स्तंभ हैं। मैं अपने मनोरथ की पूर्ति के लिए उद्योग कर रहा हूँ। कर्म करना मेरा धर्म और अधिकार है, फल देनेवाला कोई दूसरा ही है।
उपसंहार – मैं तो यही सोचता हूँ कि जब तक मनुष्य का भाग्य फूटा रहता है, तब तक उस पर विपत्ति के काले बादल मंडराते ही रहते हैं। भाग्य का सितारा चमका नहीं कि सारी विपत्तियाँ अपना-अपना रास्ता ले लेती हैं और फिर मुड़कर देखती भी नहीं। मैं भी उस दिन की बाट देख रहा हूँ, जब मेरी साधना पूरी होगी, मेरी गणना विद्वानों में होगी।