झेन की देन
झेन की देन – लघु प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. जापान में चाय पीना एक ‘सेरेमनी’ क्यों है?
उत्तर – जापान में चाय पीना ‘टी सेरेमनी’ कहलाती है। जापानी भाषा में इसे चा-नो-यू कहते हैं। इसके लिए एक शांतिपूर्ण कमरे में अधिकतम तीन व्यक्तियों को बिठाकर प्याले में दो घूँट ही चाय दी जाती है। इसमें शान्ति का महत्त्व होने से अधिक लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता, क्योंकि चाय पीने के बाद दिमाग की रफ्तार धीमी पड़ती जाती है। इसमें मानसिक रोग का उपचार होता है, मानसिक सन्तुलन ठीक होता है तथा व्यक्ति भूत-भविष्य की चिंता नहीं करता है।
प्रश्न 2. भूत, भविष्य और वर्तमान में किसे सत्य माना गया है? ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर – लेखक रवींद्र केलेकर ने स्पर्श के पाठ ‘झेन की देन’ में वर्तमान को ही सत्य माना है। भूत, भविष्य और वर्तमान में वर्तमान को सत्य माना गया है क्योंकि भूत बीत चुका है तथा भविष्य किसी ने देखा नहीं. अर्थात मनुष्य वर्तमान में ही जीता है तथा वही सत्य है।
प्रश्न 3. ‘झेन की देन’ पाठ में लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगाने की बात क्यों कही है?
उत्तर – लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगाने की बात इसलिए कही है, क्योंकि उनमें अमेरिका से प्रतिस्पर्धा की भावना है। वे बहुत ही तेज़ गति से प्रगति करना चाहते हैं। वे एक ही दिन में एक महीने का काम निपटा देना चाहते हैं। इस कारण वे अपने जीवन में रफ्तार बढ़ाना चाहते हैं।
प्रश्न 4. ‘झेन की देन’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कौन निरर्थक बोलता है और क्यों?
उत्तर – जापान देश का आम आदमी निरर्थक बोलता है क्योंकि वह काम की अधिकता के कारण तनावग्रस्त रहता है। उसने अपने जीवन की रफ्तार बढ़ा ली है। वहाँ के आदमी के पास समय का अभाव है।
प्रश्न 5. ‘टी-सेरेमनी’ किस प्रकार से लाभदायक होती है?
उत्तर – यह झेन संस्कृति की देन है। इससे मानसिक रोग का उपचार होता है, मानसिक सन्तुलन कायम होता है तथा भूत-भविष्य की चिंता नहीं रहती। टी-सेरेमनी का शांतिपूर्ण वातावरण सभी प्रकार के तनावों से मुक्ति प्रदान कर वर्तमान में जीना सिखाता है।
प्रश्न 6. जापानी लोगों में मानसिक बीमारियाँ क्यों बढ़ रही हैं?
उत्तर – जापानी लोगों में मानसिक बीमारियाँ बढ़ रही हैं जिसका कारण जीवन की रफ्तार का बहुत अधिक बढ़ जाना है। वहाँ लोग चलते नहीं अपितु दौड़ते हैं। जीवन की तेज भाग-दौड़ के कारण लोगों को अकेलापन महसूस होता है और वे तनाव के शिकार हो जाते हैं। विकसित देशों से प्रतिस्पर्धा करने के कारण एक महीने का काम एक दिन में करने की कोशिश होती है और दिमाग हमेशा हज़ार गुणा अधिक गति से दौड़ता है जो तनाव बढ़ाता है।