जॉर्ज पंचम की नाक
प्रश्न. ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ में ‘नाक’ के माध्यम से समाज पर क्या व्यंग्य किया गया है?
उत्तर : ‘जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ के माध्यम से लेखक ने समाज पर व्यंग्य किया है कि ‘नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है।’ जॉर्ज पंचम की लाट पर नाक लगाई जाए या नहीं, इसके लिए कई आन्दोलन हुए यह भी व्यंग्य किया गया है। इंग्लैण्ड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के स्वागत में लाट पर नाक न होने पर उत्पन्न परेशानी तथा उस नाक के नाप की खोज करना आदि के माध्यम से भारत की नाक का प्रश्न भी रखा गया है। जॉर्ज पंचम की लाट पर नाक लगेगी तभी भारत की नाक बचेगी, यह व्यंग्य भी प्रदर्शित होता है। चालीस करोड़ की जनता में से किसी भी एक व्यक्ति की जिन्दा नाक लाट पर लगाना व महारानी का मान-सम्मान करना सर्वथा अनुचित है और जिन्दा व्यक्ति की नाक काटना अनुचित के साथ-साथ पाप भी है। मगर किसी भी तरह से लाट की नाक लगनी चाहिए, इसके लिए अपने देश के लोगों को बेशक कितनी ही परेशानी झेलनी पड़ें, बेशक किसी की जान चली जाए लेकिन किसी दूसरे देश के सामने अपनी नाक नहीं कटनी चाहिए। उस समय के समाज में यह व्यंग्य भली प्रकार से उपयुक्त बैठता है।