जनवरी 1963 को ‘मोर’ घोषित हुआ भारत का राष्ट्रीय पक्षी
जनवरी, 1963
इसी दिन मोर को भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया था। मोर को राष्ट्रीय पक्षी चुने जाने के पीछे बहुत सी वजहें रहीं।
माधवी कृष्णन ने 1961 में लिखे अपने एक आर्टिकल में कहा था कि भारतीय वन्य प्राणी बोर्ड की उठाकामुण्ड में बैठक हुई थी।
इसमें सारस, ब्राह्मिणी काइट, बस्टर्ड और हंस के नामों पर भी चर्चा हुई थी, लेकिन इन सब में मोर चुना गया। दरअसल इसके लिए जो गाइडलाइन्स बनाई गई थीं, उनके अनुसार राष्ट्रीय पक्षी घोषित किए जाने के लिए उस पक्षी का देश के सभी हिस्सों में मौजूद होना जरूरी है।
इसके अलावा आम आदमी इसे पहचान सके। इसके अलावा यह पूरी तरह से भारतीय संस्कृति और परंपरा का भी हिस्सा होना चाहिए।
एक कथा के अनुसार जब कृष्ण भगवान बांसुरी बजाते थे तो राधा रानी मुग्ध होकर नृत्य करने लगती थीं। राधाजी को नृत्य करते देख वहां पर मोर आ जाते थे और वो झूमकर नाचने लगते थे। कृष्ण जी ऐसा देखकर बहुत खुश होते थे। एक बार मोर जब नाच रहे थे तो उनका पंख टूट गया, झट से कृष्ण भगवान ने उस पंख को उठाकर अपने सर पर सजा लिया।
जब राधाजी ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि इन मोरों के नाचने में उन्हें राधाजी का प्रेम दिखता है।
इस कथा के आधार पर यह निश्चित होता है कि भगवान श्रीकृष्ण को मोर से बहुत प्यार और लगाव था, इसीलिए वो पंख को हमेशा अपने सर पर सजाते थे।
मोर को भगवान कार्तिकेय (मुरुगन) का वाहन माना जाता है। मोर अथवा मयूर एक पक्षी है, जिसका मूलस्थान दक्षिणपूर्वी एशिया में है। ये ज़्यादातर खुले वनों में वन्यपक्षी की तरह रहते हैं। नीला मोर भारत और श्रीलंका का राष्ट्रीय पक्षी है।
मोर का आकार सभी पक्षियों में सबसे बड़ा होता है। मोर आमतौर पर पीपल, बरगद और नीम के पेड़ पर पाया जाता है। मोर को ऊंची जगह पर बैठना बहुत पसंद है। मोर के इतना सुंदर होने के पीछे उसका कई रंगों से सुसज्जित होना है।
मोर (Peacock) के बढ़ते शिकार के कारण भारत सरकार ने वन्य-जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत पूर्ण संरक्षण दिया है जिसके बाद मोरों के शिकार में कमी आई है।
मोर बहुत ही शांत और शर्मीला किस्म का पक्षी होता है। मोर हमेशा तीन -चार मोरों के साथ रहता है। मोर इंसानों से दूर ही रहना पसंद करता है।
मोर की आवाज बहुत तेज होती है, जिसको 2 किलोमीटर दूर से ही सुना जा सकता है। लेकिन इसकी आवाज कर्कश भी होती है। मोर के शरीर का रंग चटक नीला और बैंगनी होता है।
यह पक्षियों में सबसे बड़ा पक्षी होता है। इसके पंख बहुत बड़े होते हैं, जिसके कारण यह ज्यादा दूरी तक उड़ नहीं पाता है और यह ज्यादातर चलना ही पसंद करता है।
इसके पंख खोखले होते हैं। साथ ही पंखों पर पेड़ों के पत्तों की तरह छोटी-छोटी पंखुड़ियां होती हैं। पंखों के अंत में चटख रंगों की चांद जैसी आकृति बनी होती है जो कि देखने में बहुत ही सुंदर लगती है।
मोर कई चटकीले रंगों से सुसज्जित एक सुंदर पक्षी है। मोर अधिकतर सभी देशों में पाया जाता है, लेकिन इसकी सबसे सुंदर प्रजाति भारत देश में ही पाई जाती है।
मोर का जीवनकाल 15 से 25 वर्ष की अवधि का होता है। मोर राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बहुतायत में पाया जाता है। मोर भोजन में अनाज, सब्जियां और कीट-पतंगे खाता है। इसके साथ-साथ समय आने पर वह जहरीले सांप को भी मार कर खा सकता है।
मोर के कानों की सुनने की क्षमता बहुत अधिक होती है। एक छोटी सी भी आहट को बहुत दूरी से सुन सकता है। मोर आम पक्षियों की तरह इंसानों के साथ घुलता मिलता नहीं है। वह शर्मीले स्वभाव का होता है, जिसके कारण वह ज्यादातर पेड़ों और जंगलों में ही पाया जाता है।
मोर (Peacock) प्राकृतिक आपदा आने से पहले ही जोर-जोर से आवाज करके उसके बारे में अवगत करा देता है।
मोर बारिश के दिनों में बारिश आने से पहले ही जोर- जोर से आवाज करके उसका संकेत दे देता है और साथ ही जब बारिश का मौसम आता है तो मोर अपने पंख फैलाकर ऐसे नाचता है कि मानो वह बारिश का स्वागत कर रहा हो।
मोर का नृत्य धीमी गति का होता है। वह एक ही जगह पर पंख फैलाकर धीरे-धीरे घूमकर अपना नृत्य दिखाता है।
मोर (Peacock) के सिर पर चांद जैसी आकृति में छोटी-छोटी पंखुड़ियां बनी हुई होती हैं। लोगों के अनुसार यह उसका ताज है, इसीलिए पक्षियों में इसे राजा कहा जाता है।
मोर बहुत अधिक सुंदर पक्षी है, इसलिए इसके पंखों का इस्तेमाल सजावट के लिए भी किया जाता है। साथ ही इसके पंखों से कुछ दवाइयां भी बनाई जाती हैं। इसलिए इसका शिकार बहुत अधिक बढ़ गया है।
इसलिए भारत सरकार ने मोर को संरक्षण देते हुए वन्य अधिनियम 1972 के तहत इसके शिकार को गैरकानूनी करार कर दिया और शिकार करने पर सजा का प्रावधान भी है।
इस कानून के बनने के बाद मोर के शिकार में कुछ हद तक कमी आई है, लेकिन लोग अब भी इसका शिकार कर रहे हैं।
हमारे पड़ोसी देश म्यांमार का भी राष्ट्रीय पक्षी मोर ही है। चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य में जो सिक्के चलते थे, उनके एक तरफ मोर बना होता था। मुग़ल बादशाह शाहजहां जिस तख्त पर बैठता था, उसकी शक्ल भी मोर जैसी थी।