किसी को बंधक बनाना खुद भी बंध जाना है।
वामन बने भगवान विष्णु ने राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगकर उसे पाताल में बंधक तो बना दिया, लेकिन वह खुद भी दान के बंधन में बंध गए और पाताल में बलि के महल के बाहर पहरा देने लगे।
उधर, पृथ्वी पर लंका का राजा रावण अपनी शक्ति के मद में सोचने लगा कि बलि को बंधन से मुक्त करा कर भूमंडल में प्रतिष्ठित करवाया जाए। इस पर चर्चा के लिए वह बलि के यहां पहुंचा और द्वारपाल को अपना परिचय देकर महल में गया।
रावण को देख बलि ने प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि तुम्हारे पितामह पुलस्त्य ऋषि और मेरे पितामह प्रह्लाद, दोनों ही ईश्वर भक्त थे, लेकिन हम दोनों ही आसुरी वृत्ति अपनाकर देवों और ऋषियों के दुःख का कारण बने। आप यहां आने का प्रयोजन बताएं।
रावण ने कहा – “महाराज बलि, भूमंडल पर मेरा राज होने के बावजूद आप बंदी जैसा जीवन बिताएं, यह उचित नहीं है। मैं आपको मुक्त कराने आया हूँ और उसके लिए किस प्रकार से आक्रमण करना है, उस पर विचार विमर्श करने के लिए ही मैं यहाँ आया हूँ।”
बलि ने कहा – “अच्छा हुआ कि आप आक्रमण से पहले ही यहां आ गए। मैं तो यहाँ सुखी हूँ और हर प्रकार का ऐश्वर्य भोग रहा हूँ। बंदी तो द्वार पर खड़ा वह व्यक्ति है जो दिन रात पहरा देने के लिए बंदी जैसा जीवन बिता रहा है। मुझे मुक्त कराने के लिए उससे लड़ना होगा। खैर, इस पर बाद में सोचेंगे, तुम जरा मेरे कुंडल उठा लाओ।”
यह सुनकर रावण प्रसन्न हुआ और कुंडल उठाने लगा, लेकिन वह उन्हें उठा ही नहीं सका और बार बार प्रयास करने की वजह से मूर्छित हो गया। बलि ने उसके चेहरे पर पानी डाला तो वह होश में आया। बलि ने उसे बताया कि यह कुंडल उसके प्रपितामह हिरण्यकश्यप के हैं और अब वह इन्हें धारण करता है।
रावण इससे बहुत लज्जित हुआ।
अब बलि ने पूछा कि क्या अब तुम इस द्वारपाल से जीत सकोगे ? रावण कुछ नहीं बोल सका।
बलि ने कहा – “रावण, मेरी चिंता मत करो। मैं बंधन में नहीं हूँ, बल्कि मैंने नारायण को बांध रखा है। यह द्वारपाल खुद नारायण हैं, जो दिन रात मेरी निगरानी के बंधन में बंधे हैं।”
यहां पर भक्त के वश में भगवान हैं।
या फिर दूसरा आशय यह है कि अगर आप स्वतंत्रता चाहते हैं तो कभी भी किसी को बंधक बनाने की न सोचें। अगर आप किसी को बंधक बनाते हैं तो आप भी निगरानी के लिए बंधक बन जाते हैं।