कविता : एक सुनहली किरण


एक सुनहली किरण – कीर्ति चौधरी


एक सुनहली किरण उसे भी दे दो।

भटक रहा जो अँधियाली के वन में,

लेकिन जिसके मन में,

अभी शेष है चलने की अभिलाषा,

एक सुनहली किरण उसे भी दे दो।

मौन, कर्म में निरत,

बद्ध पिंजर में व्याकुल,

भूल गया जो दुख जतलाने वाली भाषा

उसको भी वाणी के कुछ क्षण दे दो।

तुम जो सजा रहे हो,

ऊँची फुनगी पर के ऊर्ध्वमुखी,

नव पल्लव पर आभा की किरणें,

तुम जो जगा रहे हो,

दल के दल कमलों की आँखों के

सब सोए सपने,

तुम जो बिखराते हो भू पर

राशि – राशि सोना,

पथ को उद्भासित करने

एक किरण से

उसका भी माथा उद्भासित कर दो।

एक स्वप्न उसके भी सोए मन में

जाग्रत कर दो।

एक सुनहली किरण उसे भी दे दो।

कीर्ति चौधरी


कठिन शब्दों के अर्थ


अँधियाली = अंधकार, दुख-कष्ट (Darkness, Suffering)

अभिलाषा = इच्छा (Desire)

निरत = लगा हुआ (Dedicated, Engaged)

बद्ध पिंजर में = शरीर रूपी पिंजरे में कैद (Caged, Body imprisoned in)

जतलाना = प्रकट करना, जाहिर करना (To show, To point out)

ऊर्ध्वमुखी = ऊपर की ओर मुँह किए हुए (Having the face raised, Looking upwards)

पल्लव = पत्ता (Leaf)

राशि = ढेर (Heap)

उद्भासित = प्रकाशित, चमकता हुआ (Illuminating)

सोया मन = मन में उत्साह का अभाव (Lack of zeal)