कविता : इस युग को नूतन स्वर देना होगा


इस युग को नूतन स्वर देना होगा


मैं चला, तुम्हें भी चलना है तेज धारा पर

समय हथेली पर लेकर बढ़ जाओ तो

दे रहा चुनौती समय अभी नवयुवकों को

मंजिल तक तुम्हें पहुँचाना होगा

ऊँच-नीच, अमीर-गरीब का

भेद मिटा गिरे हुओं को गले लगाना होगा

मर कर सदियों तक जीना है तो

सुख विलास को छोडना होगा

यदि है मंजूर तो आगे आओ मेरे साथ

हमें ही इस युग को नूतन स्वर देना होगा।