उषा – शमशेर बहादुर सिंह
सारांश
कविता में सूर्योदय के पूर्व उषाकाल में पल-पल आकाश के परिवर्तित होने को विभिन्न उपमानों के माध्यम से उभारा गया है। जैसे-नीले शंख से, राख से लीपा चौका, काली सिल, स्लेट आदि। कविता में सूर्योदय का गतिशील चित्रण किया है जो गाँव की सुबह का जीवन्त वर्णन है।