अनुच्छेद लेखन : व्यायाम


व्यायाम अर्थात कसरत। एक कहावत के अनुसार स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन तथा आत्मा का निवास हुआ करता है। स्वस्थ मन, स्वस्थ बुद्धि, स्वस्थ आत्मा आदि के लिए शरीर को स्वस्थ रखना अत्यंत आवश्यक है। जीवन जीने के लिए मनुष्य को निरंतर परिश्रम करना पड़ता है। परिश्रम भी स्वस्थ व्यक्ति कर सकता है, निरंतर अस्वस्थ और रोगी रहनेवाला नहीं। अतः नियमित व्यायाम करना आवश्यक है। यदि व्यक्ति का शरीर रोगी या दुर्बल है तो वह जीवन का आनंद नहीं ले सकता। ऐसे में संसार के सभी सुख-साधन उसे तुच्छ लगने लगते हैं। उसका जीवन नीरस हो जाता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम, योगासन, खेलकूद, प्रातः भ्रमण आदि लाभदायक हैं। व्यायाम करने से शरीर में रक्त का संचार होता है तथा शरीर भी निरोग बना रहता है। शरीर में चुस्ती और स्फूर्ति आ जाती है। स्वस्थ व्यक्ति ही कर्मठ, आत्मविश्वासी तथा एकाग्रचित होकर अपने सभी कार्यों को पूरा करता है तथा प्रसन्नचित एवं तनाव मुक्त रहता है। जिस व्यक्ति का शरीर स्वस्थ नहीं होता वह स्वभाव से चिड़चिड़ा हो जाता है। वह आलसी बन जाता है, जल्दी थकावट अनुभव करने लगता है। परिणामस्वरूप उसे अपना शरीर भी भार स्वरूप लगने लगता है। आज तरह-तरह के खेल खेले जाते हैं। हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट आदि सभी खेल सामूहिक स्तर पर खेले जाते हैं। इन खेलों से शरीर के सभी अंगों का व्यायाम होता है। शिक्षा में खेलकूद को इसलिए सम्मिलित किया गया है, जिससे छात्र विद्यार्थी जीवन में ही अपने शरीर को भावी जीवन के लिए हृष्ट-पुष्ट तथा निरोगी बना सके। एक कवि की उक्ति के अनुसार-

शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्।”