अनुच्छेद लेखन : वृक्षारोपण का महत्त्व
वृक्षारोपण का महत्त्व
वृक्ष प्रकृति की अनमोल संपदा है। मनुष्य ने प्रकृति की गोद में ही अपने विकास की यात्रा का रथ चलाया था। मनुष्य एवं प्रकृति का अटूट संबंध है। ईश्वरीय सृष्टि की अलौकिक रचना प्रकृति की गोद में ही मनुष्य ने आँखें खोली हैं एवं प्रकृति ने ही मनुष्य का पालन-पोषण किया है। मनुष्य का संपूर्ण जीवन पेड़-पौधों पर आश्रित रहा है। वृक्षों की लकड़ी विभिन्न रूपों में मनुष्य के काम आती है। वृक्षों से हमें फल-फूल, जड़ी-बूटियाँ, औषधियाँ आदि प्राप्त होती हैं। शुद्ध वायु और तपती दोपहर में छाया वृक्षों से ही प्राप्त होती है। वृक्ष वर्षा में सहायक होते हैं एवं भूमि को उर्वरक बनाते हैं। प्रदूषण को समाप्त कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। वृक्ष बाढ़-सूखा एवं मिट्टी के कटाव आदि प्राकृतिक आपदाओं से हमारी रक्षा करते हैं। हमारी संस्कृति में वृक्षों को देवता मानकर उनकी पूजा की जाती है। होली, दीपावली, बसंत पंचमी, पोंगल, बैसाखी आदि उत्सव मनाकर हम प्रकृति का स्वागत करते हैं। यदि मनुष्य जाति को बचाना है तो वृक्षों को बचाना होगा अर्थात हमें वृक्षारोपण करना होगा। इसीलिए ‘एक बच्चा, एक पेड़’ का नारा दिया गया है। भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय वन नीति के अंतर्गत 50 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में वृक्षारोपण का लक्ष्य रखा गया है। भारत में वृक्षों के कटाव से 3 लाख हैक्टेयर वन्य क्षेत्र की कमी आई है। वनों की 50 मीटर की एक कतार वाहनों के शोर की 30.50 डेसीबल तक कम करती है। इसी तरह चौड़ी पत्ती वाले पेड़ वातावरण में उड़ रही धूल को रोकते एवं वायु की शुद्ध करते हैं। तेजी से बढ़ती जनसंख्या एवं तेजी से बढ़ती औद्योगिक इकाइयाँ, मशीनीकरण एवं शहरीकरण के कारण जीवन का तीव्र गति से कटाव हुआ है उससे समस्त विश्व चिंतित है। वृक्षारोपण का उद्देश्य केवल वृक्षों को लगाना ही नहीं, वृक्षारोपण करने के बाद उनकी उचित देखभाल भी आवश्यक है।