अनुच्छेद लेखन : मानव और प्राकृतिक आपदाएँ
मानव और प्राकृतिक आपदाएँ
प्रकृति मानव के अस्तित्व का आधार है उसके बिना मानव के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्रकृति अनेक रूपों में मानव का पोषण करती है उसके खाने, पहनने और रहने की व्यवस्था प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रकृति द्वारा ही की जाती है किंतु आज मानव प्रकृति के महत्व को भूलकर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता चला जा रहा है। जिसके परिणामस्वरूप हमें अनेक प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूस्खलनसुनामी, भूकंप, बाढ़, सूखे आदि प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। प्राकृतिक आपदा प्रकृति का मानव के प्रति रोष है जिसकी अभिव्यक्ति क्षण भर में इस पृथ्वी से मानव के अस्तित्व को मिटाने की क्षमता रखती है। प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ मनुष्य भी पर्यावरणीय असंतुलन के लिए उतना ही उत्तरदायी है। आपदा आने पर प्रकृति का तांडव देख मानव सिहर उठता है किंतु जनजीवन के सामान्य होते ही सब कुछ भूल जाता है। आज मानव वृक्षों की तेजी से कटाई, और पर्यावरण प्रदूषण फैला कर अपने क्षणिक सुख के लिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहा है। उत्तराखंड में घटी आपदा दैवीय प्राकृतिक आपदा न होकर मानव निर्मित आपदा है जिसका विकास परियोजनाओं से, बड़े बाँधों आदि से सीधा संबंध है। विकास के नाम पर पहाड़ों को चीरकर चौड़ी सड़कें बनाई जा रही हैं, नदियों का स्वाभाविक मार्ग बदला जा रहा है, वनों की निर्ममता पूर्वक कटाई की जा रही है, नदियों को बांधकर बड़ी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाएँ लागू की जा रही हैं। ऐसे में प्रकृति का रोष प्रकट करना स्वाभाविक ही है। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने का मुख्य दायित्व राज्य सरकार का है आज ऐसे उपायों की बहुत आवश्यकता है जिन की योजना पहले से बनाई गई हो सबको उनकी जानकारी हो ताकि आवश्यकता के समय उनका उपयोग किया जा सके। मौसम की चेतावनी देकर प्राथमिक उपचार के बारे में विशेष प्रशिक्षण देकर और बचाव कार्य की जागरूकता के द्वारा लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है। आपदारोधी इमारतों का निर्माण करना इमारतों की मरम्मत और उनका नवीनीकरण भी बहुत आवश्यक है। प्राकृतिक आपदाओं को रोकने में हम सबकी बराबर की भागीदारी है। हमें अपने मोहल्ले के लोगों के साथ मिलकर पहले से ही सुरक्षा योजनाएँ बनाकर समय-समय पर उनका अभ्यास करना चाहिए। लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाने चाहिए। विद्यालय में बच्चों को जागरूक किया जाना चाहिए हम प्राकृतिक आपदाओं को रोक तो नहीं सकते किंतु उचित जानकारी समुचित व्यवस्था और संगठन के हानिकारक प्रभाव को कम अवश्य कर सकते हैं। अतः हमें प्रकृति का संरक्षण करते हुए उससे अपना मित्रतापूर्ण संबंध कायम करना होगा पर्यावरण संरक्षण नियमों का कड़ाई से अनुपालन करना चाहिए तभी हम आने वाले खतरों से खुद को बचा सकते हैं।