अनुच्छेद लेखन : नर हो न निराश करो मन को


‘नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो कुछ काम करो।’ जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। सुख-दुःख का क्रम चलता ही रहता है। सफलता और असफलता आती-जाती रहती है। पर किसी एक घटना को याद कर निराश नहीं होना चाहिए। हमेशा अपने काम पर ध्यान देना चाहिए। संघर्ष मानव जीवन का अभिन्न अंग है। इसके बिना जीवन के अस्तित्व को बचाना कठिन है।

भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने भी कहा है- “कर्म के बिना किसी भी वस्तु का अस्तित्व नहीं है। स्वयं मैं भी इससे वंचित नहीं हूँ।” सफलता और असफलता जीवन के आवश्यक अंग हैं। असफलताओं को जीवन का अंग मानकर अपने कार्य में जो लगा रहता है, सफलता उसे ही मिलती है। निराश होकर बैठ जाने वाले कभी सफल नहीं हो पाते। निराशा तो एक ऐसी बीमारी है जो कैंसर और एड्स से भी खतरनाक है। जो व्यक्ति एक बार इसका शिकार हुआ उसका इलाज कोई नहीं कर सका। ‘कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ इस सूक्ति को ध्यान में रखकर मनुष्य को हमेशा कर्म करते रहना चाहिए। मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करना है। फल की इच्छा करना नहीं। मनुष्य को हमेशा आशावादी होना चाहिए और अपने मन को कभी भी निराश नहीं होने देना चाहिए।


अनुच्छेद लेखन : नर हो न निराश करो मन को