CBSEEducationअनुच्छेद लेखन (Anuchhed Lekhan)

अनुच्छेद लेखन : करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान


कविवर वृंद ने नीति के अनेक दोहे लिखे हैं। यह उक्ति कवि वृंद द्वारा रचित एक दोहे की पंक्ति है। संसार में जन्म से कौन विद्वान या सब कुछ बनकर आता है? आरंभ में सभी अबोध होते हैं। अभ्यास ही उनको विद्वान, बलवान और महान बनाता है। क्या गामा पहलवान एक ही दिन में पहलवानों को पछाड़ने लगा था? क्या ध्यानचंद पहले खेल में ही विश्वविजयी बन बैठे थे? नहीं। आज संसार में जो लोग विद्या, बल और प्रतिष्ठा के ऊँचे आसनों पर बैठे हैं, कभी वे सर्वदा अनपढ़, निर्बल और गुमनाम व्यक्ति थे। इसके लिए उन्हें श्रम करना पड़ा, साधना करनी पड़ी, लगन से लगातार जुटे रहना पड़ा। इसी को अभ्यास कहते हैं, जो सफलता की कुंजी है। अभ्यास आत्मविश्वास का सर्वोत्तम साधन और परिणाम है। भगवान बुद्धि सबको देता है, जो लोग अभ्यास से उसे बढ़ा लेते हैं, वे बुद्धिमान और विद्वान बन जाते हैं। जो बुद्धि से काम नहीं लेते वे मूर्ख रह जाते हैं। बेकार पड़े लोहे को भी जंग लग जाता है। इसी प्रकार हम जिस अंग से काम नहीं लेते, वह अंग दुर्बल रह जाता है। प्रकृति द्वारा दी गई शक्तियों का सदुपयोग करना ही अभ्यास है। इसी से शक्तियों का विकास होता है। सफलताएँ चरण चूमती हैं। आदमी उन्नति का शिखर छू लेता है। विद्वान के अनुसार अभ्यास ही सफलता की सीढ़ी है। केवल शिक्षा में ही नहीं, जीवन के किसी भी क्षेत्र में जो सफलता चाहता है, उसके लिए अभ्यास आवश्यक है। अभ्यास से कार्य में कुशलता आती है। कठिनाइयाँ सरल होती हैं। समय की बचत होती है। अभ्यास केवल व्यक्तिगत वस्तु नहीं, यह एक सामूहिक वरदान भी है। देश की उन्नति का भी यही मूलमंत्र है और समाज-सुधार का भी। देश के विकास के लिए एक व्यक्ति का नहीं, समूचे राष्ट्र का निरंतर अभ्यास चाहिए, श्रम चाहिए, वह भी एक दिन का नहीं, वर्षों का। अभ्यास करते हुए ‘सहज पके सो मीठा होय’ के महामंत्र को भुलाना नहीं चाहिए। निरंतर अभ्यास का यही चरम लक्ष्य है। अतः विशेष रूप से सावधान रहकर प्रयत्न और अभ्यास की आदत डालनी चाहिए। समय खोना जीवन को नष्ट करना है।


अनुच्छेद लेखन : करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान