संवाद-लेखन (Dialogue Writing)
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में परस्पर व्यवहार करने के लिए वह अधिकतर बातचीत का सहारा लेता है। यह बातचीत दो-तीन या अधिक व्यक्तियों के बीच हो सकती है। बातचीत को हम संवाद भी कहते हैं। यह संवाद (बातचीत) आमने-सामने भी हो सकता है और फोन के माध्यम से भी।
दो, तीन या अधिक व्यक्तियों की परस्पर बातचीत को ज्यों का त्यों लिखना संवाद-लेखन कहलाता है। संवाद व्यक्तियों के नाम लिखकर उनके द्वारा बोली गई बात को (ज्यों-का-त्यों) उसी रूप में लिख दिया जाता है।
संवाद-लेखन अपने आप में एक साहित्यिक विधा का रूप लेता जा रहा है। चलचित्रों, नाटकों तथा एकल अभिनय में भी संवाद महत्त्वपूर्ण होते हैं। किसी भी प्रसंग, घटना या कहानी के लिए संवाद लिखते समय निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए :
1. संवाद में प्रभावशाली, सरल और रोचक भाषा का प्रयोग होना चाहिए।
2. विचारों को तर्कसम्मत रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।
3. देश, काल और व्यक्ति के अनुरूप संवाद की शब्दावली एवं भाषा का चयन करना चाहिए।
4. संवाद में स्वाभाविक प्रवाह बना रहना चाहिए।
5. संवाद छोटे व रोचक होने चाहिए।
6. कहानी या घटना को आगे ले जाने वाले होने चाहिए।
7. उचित मुहावरों व शब्दों का प्रयोग होना चाहिए।
8. चरित्र को बखूबी प्रस्तुत करने वाले होने चाहिए।