लघु कथा : साहस और कर्तव्य
साहस और कर्तव्य
बापू उन दिनों विद्यालय छात्र थे। एक दिन कक्षा में गणित के अध्यापक पढ़ाते-पढ़ाते अचानक रुके और बच्चों से प्रश्न पूछा, “तुम अपने माता-पिता के साथ कहीं जा रहे हो, तुम्हारे एक ओर पिता और दूसरी ओर माता हों, ऐसे में सामने से दहाड़ता हुआ एक सिंह आ जाए, तो तुम क्या करोगे?”
सभी बच्चे अपनी-अपनी समझ के अनुसार उत्तर देने लगे। किसी ने कहा कि हम भाग जाएँगे। दूसरे ने कहा कि हम माता-पिता की गोद में चढ़ जाएँगे। किसी ने कहा कि हम माता-पिता के पीछे हो जाएँगे। इसी प्रकार सभी कुछ न कुछ कहते गए। अध्यापक ने अंत में मोहनदास से पूछा, “मोहन ! तुम ऐसी स्थिति में क्या करोगे?”
मोहनदास ने उठकर दृढ़ स्वर में कहा, “गुरुदेव ! सबसे पहले मैं दौड़कर सिंह के पास चला जाऊँगा, जिससे वह मेरे माता-पिता पर आघात न कर सके और उनकी रक्षा हो सके।”
उनके बाल मन की इस महानता से अध्यापक अति प्रसन्न हुए और उन्होंने मोहनदास के उज्ज्वल भविष्य की कामना की।