हरिहर काका : लघु प्रश्न – उत्तर
प्रश्न. महंत और अपने भाई, हरिहर काका को एक जैसे क्यों लगने लगते हैं? ‘हरिहर काका’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – हरिहर काका एक वृद्ध और निस्संतान व्यक्ति हैं, अकेलेपन के कारण उन्होंने भाइयों के परिवार का आश्रय लिया। हरिहर काका के हिस्से में 15 बीघा ज़मीन थी जिस पर भाइयों के अलावा ठाकुरबारी के महंत की दृष्टि थी। महंत और हरिहर काका के भाई दोनों ही स्वार्थ में डूबे हुए थे। हरिहर काका ने जब निश्चय किया कि वे अपनी ज़मीन भाइयों तथा महंत किसी के नाम नहीं लिखेंगे। उन दोनों ने ही ज़मीन हड़पने के लिए जबरदस्ती कागज़ों पर उनके अंगूठे का निशान लिया व शारीरिक यंत्रणाएँ दीं। ज़मीन हथियाने के लिए वे इतना गिर गए कि उनकी जान लेने की भी कोशिश की। उनकी देखभाल करने का तो केवल उन्होंने दिखावा ही किया। इसी कारण हरिहर काका को महन्त और अपने भाई एक जैसे लगने लगे।
प्रश्न. ‘हरिहर काका’ कहानी के आधार पर लिखिए कि रिश्तों की नींव मजबूत बनाने के लिए किन गुणों की आवश्यकता है और स्पष्ट कीजिए कि ऐसा क्यों ज़रूरी है?
उत्तर – ‘हरिहर काका’ कहानी के आधार पर रिश्तों की नींव मज़बूत करने के लिए अनेक गुणों की आवश्यकता होती है। सामाजिक या पारिवारिक रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने के लिए आदमी को निज की भावना से ऊपर उठना होता है। आधुनिक परिवर्तित समाज तथा रिश्तों में बदलाव आ रहा है। उनमें स्वार्थ लोलुपता बढ़ती जा रही है। कथावस्तु के आधार पर हरिहर काका एक वृद्ध नि:संतान व्यक्ति हैं, परिवार के सदस्यों को जब लगता है कि काका कहीं अपनी ज़मीन महंत के नाम न कर दें तब वे उनकी सेवा करने लगते हैं। बाद में अपनी स्वार्थ सिद्धि न होती देखकर वे काका के साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं। पारिवारिक संबंधों में भ्रातृभाव को बेदखल कर पाँव पसारती जा रही स्वार्थ लिप्सा, हिंसावृत्ति को समाप्त करने के लिए परस्पर सहयोग, सद्भाव और सौहार्द जैसे गुणों की आवश्यकता है जिससे समाज में, रिश्तों में दूरियाँ और विघटन समाप्त हो जाए।
प्रश्न. हरिहर काका अनपढ़ थे लेकिन अपने अनुभव और विवेक से दुनिया को बेहतर समझते थे, उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्रश्न. ‘अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका दुनिया की अच्छी समझ रखते हैं।’ कहानी के आधार पर सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
उत्तर – अनपढ़ हुए भी हरिहर काका, अपने अनुभव और विवेक से दुनिया की बेहतर समझ रखते थे। आरंभ में वे महंतजी की बातों और प्रलोभनों से प्रभावित हुए, शीघ्र ही उन्हें इस बात का आभास हो गया कि महंत की अपेक्षा उनके भाई-भतीजे बेहतर हैं। इस प्रकार उनका महंत के प्रति विश्वास कम होने लगा। कालांतर में वे यह भी समझ गए कि दोनों ही उनकी आवभगत ज़मीन अपने नाम कराने के लिए कर रहे हैं, जैसे ही ज़मीन अपने नाम लिखवा लेंगे वैसे ही वे उन्हें दूध की मक्खी की तरह निकाल फेकेंगे। वे ज़मीन-जायदाद के मुद्दे पर जागरूक हो गए थे। क्योंकि उन्हें गाँव के कुछ उन लोगों की दुर्दशा का पता था जिन्होंने जीते जी अपनी ज़मीन दान में दी या किसी संबंधी के नाम पर लिखवा दी। वे सीधे-सादे और भोले किसान की अपेक्षा चतुर और ज्ञानी की तरह दुनिया को समझ गए थे। बाद में चतुर व्यक्ति की तरह उन्होंने निर्णय लिया कि वे अकेले रहेंगे, पर जमीन किसी के नाम नहीं करेंगे।
प्रश्न. महंत द्वारा हरिहर काका का अपहरण महंत के चरित्र की किस सच्चाई को सामने लाता है? ठाकुरबारी जैसी संस्थाओं से कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर – ‘ठाकुरबारी’ के महंत का चरित्र उत्तम नहीं था। वह केवल नाममात्र का ही महंत था। वह अंदर से ढोंगी और धन का लोभी था। वह हरिहर काका की ज़मीन पर नज़र गड़ाए हुए था। हरिहर काका के घर के आपसी कलह से वह लाभ उठाना चाह रहा था। जब हरिहर काका ने ज़मीन ठाकुरबारी के नाम से लिखने से मना कर दिया तो वह हरिहर काका का अपहरण करवा देता है और उनके साथ मार-पीट भी कराता है। हरिहर काका का अपहरण किए जाने से महंत के चारित्रिक पतन की सच्चाई सामने आ जाती है। ‘ठाकुरबारी’ जैसी संस्थाओं से बचने के लिए इनसे दूर रहने की आवश्यकता है। आजकल लोभी और ढोंगी लोग ऐसी संस्थाओं का नेतृत्व कर रहे हैं जिनसे धार्मिक ज्ञान की जगह उन्माद फैल रहा है।
प्रश्न. अपने जीते जी ही अपनी धन-संपत्ति को हड़पने के लिए रचे जा रहे षड्यंत्र और दाँव-पेंच को देखकर हरिहर काका पर क्या बीती होगी? कल्पना के आधार पर लिखिए।
उत्तर – जीवित काल में ही अपनी धन-संपत्ति को हड़पने के लिए रचे जा रहे षड़यंत्र और दाँव-पेंच को देखकर हरिहर काका बहुत को अपने संबंधियों के साथ-साथ और धर्म पर आधारित ठाकुरबारी दोनों से धोखा मिला। उनकी संपत्ति और धन-दौलत पर सबकी गिद्ध दृष्टि थी। वे उनकी ज़मीन-जायदाद को हड़प चाहते थे। किसी को उनकी भावनाओं की कद्र नहीं थी। इन सबको देखकर वे अंदर से बुरी तरह टूट चुके थे। अब वे चुपचाप पूरे दिन आसमान की ओर देखते रहते, जिसे देखकर ऐसा लगता मानो वे मृत्यु की राह देख रहे हों। उनके मन में समस्त मानवीय मूल्यों के प्रति अविश्वास का भाव उत्पन्न हो गया होगा तथा वे अपने जीवन के प्रति उदासीन हो गए होंगे।
प्रश्न. ‘हरिहर काका’ के साथ उनके भाइयों तथा ठाकुरबारी के महंत ने कैसा व्यवहार किया? क्या आप इसे उचित मानते हैं? कारण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – हरिहर काका एक वृद्ध और निस्संतान व्यक्ति हैं, अकेलेपन के कारण उन्होंने भाइयों के परिवार का आश्रय लिया। प्रारम्भ में उनके भाई अचानक उनको आदर-सम्मान और सुरक्षा प्रदान करने लगे, इसकी वजह उनकी पंद्रह बीघे ज़मीन थी। हरिहर काका ने जब निश्चय किया कि वे अपनी जायदाद भाइयों तथा महंत किसी के नाम नहीं लिखेंगे तब महंत ने अपने आदमियों से उन्हें उठवाकर हाथ – पैर बाँध कर, मुँह में कपड़ा ढूँसकर जबरदस्ती कागजों पर अँगूठे के निशान लगवा लिए। पता लगने पर उनके भाई पुलिस की सहायता से बुरी हालत में उनकी जान बचाकर घर ले आए। भाइयों ने भी काका की ज़मीन हड़पने के लिए महंत से भी विकराल रूप धारण कर यातनाएँ देना शुरू कर दिया। उन्हें भूखे रखकर शारीरिक यंत्रणाएँ दी गईं। उनकी पीठ, माथे और पाँवों पर जख्मों के निशान उभर आए थे।
हरिहर काका के साथ उनके भाइयों तथा ठाकुरबारी के महंत ने जो व्यवहार किया, हम उसे उचित नहीं मानते हैं। क्योंकि किसी भी व्यक्ति के साथ इस तरह का क्रूर व्यवहार कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकता। इसका कारण स्पष्ट है कि समाज व परिवार में स्वार्थ की भावना बढ़ गई है जबकि आपसी रिश्तों में स्नेह बंधुत्व की भावना समाप्त होकर, केवल संवेदनशून्यता ही रह गई है। इस प्रकार मानवीय मूल्यों का पतन अनुचित व गंभीर चिंता का विषय है। हमें तो ऐसा लगता है कि वृद्धों के प्रति इस प्रकार का क्रूर व्यवहार करने वालों को कठोर दण्ड अवश्य मिलना चाहिए।
प्रश्न. कल्पना कीजिए कि एक पत्रकार के रूप में आप हरिहर काका के बारे अपने समाचार-पत्र को क्या-क्या बताना चाहेंगे और समाज को उसके उत्तरदायित्व बोध कैसे कराएँगे ?
उत्तर – एक पत्रकार के रूप में हम हरिहर काका के बारे में अपने समाचार पत्र को कई बातें बताना चाहेंगे। हम बताएँगे कि किस प्रकार महंत व उनके भाइयों ने हरिहर काका पर अत्याचार किए, उनके धन व ज़मीन के लालच में उनको धमकाया, अपहरण किया, जबरदस्ती अंगूठा लगवाया, उनकी हत्या करने की कोशिश की। हरिहर काका की दयनीय दशा को देखते हुए हम बताएँगे कि वर्तमान में समाज में, वृद्धों की दशा शोचनीय होती जा रही है। धन-संपति हथियाने के लिए उनको यातनाएँ दी जाती हैं। परिवार में हर समय कलहपूर्ण स्थिति बनी रहती है। ऐसा लगता है कि रिश्तों और मानवीय भावनाओं का कोई मूल्य ही नहीं रह गया है। इस स्थिति से उबरने के लिए समाज को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ेगी। समाज को अपना उत्तरदायित्व समझना पड़ेगा। समाज में परिवार और रिश्ते दोनों ही महत्त्वपूर्ण होते हैं। परिवार जैसी संस्था का विघटन उचित नहीं। पारिवारिक मूल्यों की रक्षा के लिए, समाज को कई कार्य करने होंगे। समाज को परिवार रूपी संस्था को प्रेरित करना चाहिए कि परिवार द्वारा वृद्धों को पर्याप्त प्रेम, सम्मान व सुरक्षा मिले। उनकी उचित देखभाल, यशोचित सेवा होनी चाहिए। पारिवारिक रिश्तों में निजी स्वार्थ, अहंकार व लालच समाप्त होना चाहिए। संयुक्त परिवार में ढालने के लिए, स्वयं में, आपसी स्नेह, बड़ों का आदर, एक-दूसरे के सुख-दु:ख को समझना, सहनशीलता आदि गुणों का समावेश किया जाए तभी हमारे पारिवारिक व सामाजिक संबंध, हमारी संपत्ति व हमारी प्रतिष्ठा बने रहेंगे व सुरक्षित रहेंगे। समाज के इस प्रकार के सफल प्रयत्नों द्वारा ही परिवार, विशेषकर संयुक्त परिवार का विघटन नहीं, संघटन होगा और हरिहर काका जैसे वृद्धजनों को भी एक अच्छा जीवन जीने को मिलेगा।
प्रश्न. ‘हरिहर काका’ के विरोध में महंत और पुजारी ही नहीं उनके भाई भी थे। इसका कारण क्या था? हरिहर काका उनकी राय क्यों नहीं मानना चाहते थे? विस्तार से समझाइए।
उत्तर – महंत व पुजारी कपटी व स्वार्थी स्वभाव के थे। भाइयों के मन में भी स्वार्थ व धन-लोलुपता की भावना थी। निस्संतान हरिहर काका की ज़मीन व धन पर सभी की लालची नज़र थी। इन्हीं कारणों से वे हरिहर काका के विरोध में रहते थे और उनकी ज़मीन को अपने नाम करवाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने हरिहर काका को जान से मारने का प्रयास भी किया, लेकिन हरिहर काका ने उनकी राय फिर भी नहीं मानी क्योंकि उन्हें गाँव के कुछ ऐसे लोगों की दुर्दशा व बुरी हालत का पता था जिन्होंने जीते जी अपनी ज़मीन दान में दे दी या संबंधियों के नाम लिख दी। वे जानते थे कि उनके जीवन का सहारा उनकी ज़मीन ही है। अगर वही उन्होंने किसी ओर के नाम लिख दी तो वे दाने-दाने को मोहताज हो सकते हैं।
हरिहर काका के साथ उनके भाइयों द्वारा दुर्व्यवहार किए जाने पर पुजारी व महंत ने उनकी जायदाद के लालच में काका की बहुत आवभगत की। उन्हें अपने साथ ठाकुरबारी ले आए और उन्हें तरह-तरह से बहला-फुसलाकर जायदाद को ठाकुर जी के नाम करने के लिए समझाने लगे। किसी भी तरह से वे उनकी जायदाद को अपने नाम लिखवाना चाहते थे, किन्तु हरिहर काका ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया तो उन्हें अपने पुजारियों से पिटवाया और कोरे कागजों पर उनके अँगूठे के निशान ले लिए, यहाँ तक कि उन्हें जान से मरवाने का भी प्रयास किया। इसलिए हरिहर काका उनकी राय नहीं मानना चाहते थे
प्रश्न. हरिहर काका के जीवन के अनुभवों से हमें क्या सीख मिलती है? पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर – हरिहर काका के अनुभवों से हमें यह सीख मिलती है कि आज के भौतिकवादी युग में पूरी दुनिया अपने-अपने स्वार्थों की पूर्ति करने में लगी हुई है। आपसी खून के रिश्तों में भी प्रेम, सेवा-सहयोग, विश्वास का स्थान स्वार्थ और लालच ने ले लिया है। यहाँ मानवीय मूल्यों के कोई मायने नहीं रह गए हैं। रिश्तों की अहमियत खत्म हो चुकी है। धार्मिक संस्थाएँ भी ढोंगियों व पाखंडियों के कब्जे में हैं। अतः हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि धार्मिक अंधविश्वासों को फैलाने वाले पाखंडियों से दूर रहना चाहिए। राजनीतिक बहकावे में भी नहीं आना चाहिए। जीवन में रिश्तों की अहमियत को समझना चाहिए। बड़ों के साथ आदर-सम्मान व छोटों के साथ प्रेम पूर्ण व्यवहार करना चाहिए। पारिवारिक मतभेदों को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के, केवल घर के बड़े लोगों की सलाह लेते हुए परिवार में ही निपटाना चाहिए और मानवीय मूल्यों को स्थापित करना चाहिए। सबसे बड़ी बात, जीते-जी किसी के भी नाम अपनी जायदाद नहीं करनी चाहिए।
प्रश्न. ‘हरिहर काका’ के जीवन में आई कठिनाइयों का मूल कारण क्या था? ऐसी सामाजिक समस्या के समाधान के क्या उपाय हो सकते हैं?
उत्तर – हरिहर काका को परिवार व ठाकुरबारी दोनों से धोखा मिला। सभी उनकी ज़मीन – जायदाद को हड़प लेना चाहते थे। किसी को उनकी भावनाओं की कद्र नहीं थी। उनके जीवन में आई इन कठिनाइयों का मूल कारण वर्तमान समय में सामाजिक व पारिवारिक रिश्तों में स्वार्थ और लालच का बढ़ना है, जिसके कारण समाज में व परिवार में प्रेम, सेवा, त्याग, सहानुभूति जैसे मानवीय मूल्य समाप्त हो गए हैं। हरिहर काका की ज़मीन-जायदाद पर परिवार वालों की कुदृष्टि थी। वहीं ठाकुरबारी भी घरवालों की आपसी कलह का फायदा उठाने को तत्पर थी। इस प्रकार के समाज में फैली इस समस्या के समाधान का यही उपाय है कि समाज व परिवार में मानवीय मूल्यों की स्थापना होनी चाहिए। लोगों को परिवार में एक-दूसरे के सुख-दु:ख, आपद-विपद, बीमारी आदि में सहयोग देना चाहिए। पारिवारिक मतभेदों को आपसी बातचीत से सुलझाना चाहिए। महंत जैसे पाखंडियों से दूर रहना चाहिए। घर की कलह में बाहरी हस्तक्षेप को नकार देना चाहिए। परिवार के लोगों में मतभेद भले ही हों, मन भेद नहीं होने चाहिए।
प्रश्न. ‘हरिहर काका’ कहानी के आधार पर बताइए कि महंत से समाज की क्या अपेक्षा होती है? उक्त कहानी में महंतों की भूमिका पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – ‘हरिहर काका’ कहानी के आधार पर एक महंत की समाज से यह अपेक्षा होती है कि वह जाति के आधार पर भेद – भाव न करके समाज में परोपकार करे व धन दौलत की लालसा न करके ईश्वर की भक्ति में ही मन लगाए तथा ईश्वर का भजन करके लोगों का भला करे तथा उसके मन में कभी लालच नहीं आए तथा परिवार में रहकर ही ईश्वर की पूजा करे। ढोंग न करके सच्चे मन से सबकी सेवा करे तथा निस्स्वार्थ भावना से गरीबों की मदद करे। भटके हुए लोगों का मार्गदर्शन कर उन्हें सही रास्ते पर लाने में सहायक बने। आजकल बाहरी आडंबर रचाने वाले बहुत से महंत हैं जो कि ईश्वर के नाम पर करोड़ों की संपत्ति हड़प लेते हैं और धर्म के नाम पर पाखंड रचाकर गंदे कार्य करते हैं जिससे लोगों का आस्था से विश्वास हट जाता है। वे किसी महंत पर विश्वास नहीं करते। उक्त कहानी में भी महंत लालची है। वह मतलब पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। साथ ही षड्यंत्र रचता है और वह लोगों को अपनी बात मनवाने के लिए बहलाता है तथा जबरदस्ती करता है।
प्रश्न. परिवार की स्वार्थपरता तथा हरिहर काका की उपेक्षा एवं उचित देखरेख न किए जाने के वर्णन को पढ़कर आपके मन पर क्या और कैसा प्रभाव पड़ता है ? अपने घर में आप ऐसी स्थिति को कैसे सँभालते?
उत्तर – हरिहर काका की उपेक्षा एवं उचित देखरेख न किए जाने तथा परिवार की स्वार्थपरता के वर्णन को पढ़कर हमारा मन व्यथित हो गया। इससे लगता है कि समाज में रिश्तों की अब अहमियत समाप्त होती जा है। परिवार और रिश्ते दोनों ही अपनी भूमिका छोड़ रहे हैं। उनमें स्वार्थ लोलुपता आती जा रही है। पारिवारिक सम्बन्धों से भाई-चारा समाप्त होकर स्वार्थ लिप्सा हिंसावृत्ति का रूप ले रही है जिससे सामाजिक रिश्तों में दूरियाँ आ रही हैं। हम अपने घर में ऐसी स्थिति को संभालने के लिए पहले से ही धैर्य रखते हुए कानूनी तौर पर वसीयत बनवाते। जिसमें स्पष्ट रूप से यह लिखवा देते कि खेतों से आने वाली आय का एक हिस्सा उसको मिलेगा जो उनकी सेवा करेगा। इतना ही नहीं अतिशय उद्वेग को नियंत्रित रखते हुए कोई भी निर्णय लेने में सावधानी रखते।
प्रश्न. अकेले होने के कारण हरिहर काका को किन-किन कठिनाइयों से गुजरना पड़ा? इन कठिनाइयों के सामने समर्पण करने के बजाए काका को किस प्रकार इसका सामना करना चाहिए था?
उत्तर – हरिहर काका एक वृद्ध और निस्संतान व्यक्ति थे। अकेलेपन के कारण उन्होंने भाइयों के परिवार का आश्रय लिया। हरिहर काका के हिस्से में 15 बीघा जमीन थी जिस पर भाइयों की कुदृष्टि थी। हरिहर काका ने जब निश्चय किया कि वे अपनी जायदाद भाइयों के नाम नहीं लिखेंगे उसके पश्चात् भाइयों ने काका की ज़मीन हड़पने के लिए विकराल रूप धारण कर यातनाएँ देना शुरू कर दिया। उन्हें भूखे रखकर शारीरिक यंत्रणाएँ दी गईं। उनकी पीठ, माथे और पाँवों पर जख्मों के निशान उभर आए थे। इन कठिनाइयों के सामने समर्पण करने के बजाए हरिहर काका को साहस और हिम्मत से सामना करते हुए अपनी जायदाद की कानूनी तौर पर वसीयत बना लेनी चाहिए थी। उस वसीयत में स्पष्ट रूप से लिखवा देना चाहिए था कि जो उनकी सेवा करेगा, वही उनके खेतों से आने वाली आय का एक हिस्सा अपने पास रखेगा और मृत्यु के पश्चात उनकी जायदाद का मालिक होगा। इस प्रकार से उन्हें आत्मसम्मान से जीना चाहिए था।
प्रश्न. ‘हरिहर काका’ कहानी के मुख्य पात्र थे जो सब कुछ होते हुए भी एक यंत्रणापूर्ण जीवन जी रहे थे, मान लीजिए आप भी उसी गाँव के निवासी होते तो उनको न्याय दिलाने के लिए आप क्या उपाय करते?
उत्तर – हरिहर काका’ कहानी के मुख्य पात्र थे जो सब कुछ होते हुए भी एक यंत्रणापूर्ण जीवन जी रहे थे। उनके पास पन्द्रह बीघे जमीन थी। उससे होने वाली आय से एक भरे – पूरे परिवार का गुजारा आराम से हो सकता था परंतु उत्तराधिकारी के न होने और अकेले होने के कारण उन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ रहा था। उनके भाई, महंत, नेता आदि सब उनकी ज़मीन अपने नाम कराने के लिए उन्हें तरह-तरह की प्रताड़नाएँ देने लगे। उनकी ज़मीन की उपज का लाभ तो लेते थे परन्तु उनकी पत्नियाँ उनकी आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखती थीं। अतः उनका जीवन यंत्रणापूर्ण हो गया था।
यदि मैं उस गाँव का निवासी होता तो उनको यंत्रणा से मुक्ति और न्याय दिलाने के लिए उन्हें कानूनी तौर पर ऐसी वसीयत बनाने की सलाह देता, जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा होता कि जो उनकी सेवा करेगा, वही उनके खेतों से आने वाली आय का एक हिस्सा रखेगा। इसके अलावा उन्हें अपनी ज़मीन बटाई पर देकर उसकी आय से स्वयं शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करने की सलाह देता।
प्रश्न. ‘हरिहर काका’ के प्रति लेखक की चिंता के क्या कारण थे ? एक शिक्षित व जागरूक नागरिक के रूप में उसे हरिहर काका की सहायता किस प्रकार करनी चाहिए थी ?
उत्तर – हरिहर काका के प्रति लेखक मिथिलेश्वर की चिंता का कारण जायदाद के लालच में उनके भाइयों तथा महंत जैसे लोगों द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार करना था। हरिहर काका एक निस्संतान वृद्ध व्यक्ति हैं, वैसे उनका भरा-पूरा संयुक्त परिवार है। परिवार के सदस्यों को लगता है कि ये अपनी ज़मीन महंत नाम न कर दें इसलिए वे उनकी सेवा करने लगते हैं परन्तु ज़मीन किसी के नाम न करने की उनकी घोषणा को सुनकर वे उनके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने लगते हैं और महंत जबरन अंगूठे का निशान लगवा लेता है परन्तु वे उसके खिलाफ मुकदमा कर देते हैं। इस परिस्थिति में लेखक ने सक्रिय होकर उनके लिए कुछ नहीं किया जबकि हरिहर काका ने लेखक को बचपन में प्यार-दुलार दिया था और लेखक ने भी उन्हें मित्रवत प्यार दिया था। हरिहर काका को इस स्थिति से उबारने के लिए लेखक को सामाजिक रूप से व कानूनी रूप से हर संभव प्रयास करते हुए उन्हें अवसाद की स्थिति से निकालना चाहिए था।
प्रश्न. “भाई का परिवार तो अपना ही होता है। उनको न देकर ठाकुरबारी को अपनी जायदाद देना उनके साथ धोखा और विश्वासघात होगा।” कथन में निहित हरिहर काका के चरित्र की विशेषता से आप क्या शिक्षा ग्रहण करते हैं ? लिखिए।
उत्तर – हरिहर काका के इस कथन से परिवार के प्रति उनके विश्वास, प्रेम और अपनेपन की भावना परिलक्षित होती है। भाइयों और उनके बच्चों के प्रति लगाव और उनको अपना समझने की भावना स्पष्ट झलकती है। हरिहर काका अपने भाइयों द्वारा उन्हें दिए गए कष्टों को भुलाकर अपनी जायदाद उनके नाम करने बारे में सोचते हैं। जब महंत उनसे अपनी जायदाद ठाकुरबारी के नाम करने की सलाह देता है तो वे सोचते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि भाइयों को जायदाद न देकर ठाकुरबारी के नाम कर देना उनके साथ धोखा करना होगा। ऐसा करके वह समाज आदर्श कायम करना चाहते थे।
हरिहर काका के चरित्र की विशेषता से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों की अपेक्षा, अपने परिवार के प्रति विश्वास बनाए रखना चाहिए। परिवार को अपना समझकर, दूसरों के बहकावे में न आकर सोच – समझकर कोई भी निर्णय लेना चाहिए। अपने परिवार को कभी धोखा नहीं देना चाहिए। उनसे प्रेम व अपनत्व की भावना रखनी चाहिए। इन्हीं बातों को अपनाकर, हम दूसरों को भी प्रेरणा दे सकते हैं व हरिहर काका की तरह समाज में आदर्श कायम कर सकते हैं।
प्रश्न. अंत में हरिहर काका द्वारा ज़मीन के सन्दर्भ में लिया जाने वाला निर्णय क्या था और वह परिवार के मूल्यों को किस परिस्थिति में प्रभावित करता है और कैसे? यह स्थिति हर व्यक्ति को क्या संदेश प्रदान करती है?
उत्तर – अंत में हरिहर काका ने अपने जीते जी अपनी ज़मीन किसी को भी न देने का निर्णय लिया। यह सुनकर उनके भाइयों का व्यवहार उनके प्रति पूरी तरह बदल गया। उन्होंने हरिहर काका को महंत से भी अधिक यातनाएँ दीं, यहाँ तक कहने लगे कि ज़मीन नाम कर दो नहीं तो मार कर घर में गाड़ देंगे। लेकिन इतना सब होने पर हरिहर काका निर्णय लेते हैं कि वे जीते जी अपनी ज़मीन किसी के नाम नहीं करेंगे। उनके इस निर्णय के कारण उनके अपने ही परिवार के सदस्य उनकी मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगते हैं। हरिहर काका की यह स्थिति समाज के हर बुजुर्ग को यह संदेश देती है कि कभी भी अपने जीते जी अपनी सम्पत्ति किसी को नहीं सौंपनी चाहिए अन्यथा उनका जीवन जीते जी नरक के समान हो जाएगा और यदि फिर भी परिवार के सदस्य बुरा व्यवहार करें तो कानून की मदद लेनी चाहिए।