संस्मरण : गांधी जी
जनता के धन का दुरुपयोग
उन दिनों गाँधी जी यरवदा बंदीगृह में थे। सर्दी के दिनों में एक बंदीगृह के कर्मी ने गाँधी जी के लिए पानी गरम किया। बाद में अंगीठी में कोयले दहकते रहे। यह देखकर गाँधी जी उस कर्मचारी से बोले, “भाई, यह अंगीठी बुझा दो, बेकार में कोयले जल रहे हैं।”
“कोयले तो सरकारी हैं, आप इनकी चिंता क्यों करते हैं?” कर्मचारी ने विनम्रता से कहा। गाँधी जी ने कहा, “क्यों न करूँ? क्या मुझे नहीं मालूम कि ये कोयले जनता के पैसे से खरीदे गए हैं। जनता के धन का दुरुपयोग मैं तो नहीं देख सकता।”