अवधि – यदि बसंत को ऋतुराज माना गया है तो वर्षा को ऋतुओं की रानी। मई – जून की गर्मी से जब धरती पर हाहाकार मचने लगता है, तब जून के अंत में या जुलाई के प्रारंभ में हमें आकाश में काले – काले बादलों के दर्शन होने लगते हैं और कुछ ही क्षणों में जब वर्षा की पहली झड़ी लगती है, तब मानो बुझते दीपक में तेल पड़ जाता है। इसके बाद यह सिलसिला लगभग सितंबर के अंत तक चलता है।
प्रभाव – इस मौसम में आकाश कभी काले तो कभी भिन्न – भिन्न रंगों के बादलों से ढका रहता है। इस ऋतु में संध्या समय में पश्चिम दिशा का रूप निहारने योग्य होता है। ऐसा लगता है, मानो प्रकृति देवी ने सतरँगी ओढ़नी ओढ़ ली हो।
कभी प्रातः तो कभी संध्या समय सतरँगी धनुष धरती से स्वर्ग में पहुंचने के लिए पुल का निर्माण कर देता है।
लाभ और हानि – जब बादलों से झरता पानी प्रकृति देवी की कृपा की वर्षा करता है, तब सड़कों पर भरे पानी में बच्चों को बड़ा आनन्द आता है। कई बार तो सड़कों पर ही नदियों और नहरों का सा दृश्य दिखाई देने लगता है।
कभी पुरवैया पेड़ों पर नृत्य करती है तो छोटे – छोटे पौधे भी नाच गाकर अपना हर्ष प्रकट करते हैं। प्रकृति रानी हरी चुनरिया ओढ़े नित्य प्रति नई नवेली दुल्हनिया सी दिखाई देती है।
पेड़ों पर बोलती कोयलिया मधुर गीत गाती है। प्रातःकाल युगल बुलबुल प्रभाती के गीत गाकर मानो हमें जगाते हैं।
बाग – बगीचे, खेत – जंगल सब स्नान करके न जाने किसकी आराधना करते दिखाई देते हैं। इस प्रकार मनुष्यों, पशुओं, पक्षियों, मेढ़कों, जुगनुओं, मंजीरों सबको आनन्द विभोर करके कुछ महीने तक अपना आतिथ्य देकर वर्षा रानी विदा हो जाती है।