CBSEEducationPunjab School Education Board(PSEB)अनुच्छेद लेखन (Anuchhed Lekhan)

रचनात्मक लेखन : काश! मैं उड़ पाती


अनुच्छेद लेखन/ रचनात्मक लेखन/ जनसंचार लेखन/ सृजनात्मक लेखन


काश! मैं उड़ पाती


हर किसी इंसान की तरह मेरी भी एक सोच है कि काश ! मैं उड़ पाती। मैं उड़ना चाहती हूँ। सच में हमेशा मेरा मन करता है कि उड़कर कहीं दूर निकल जाऊँ, आकाश की ऊँचाइयों को छू लूँ, बादलों के बीच जाकर देखूं कि क्या है इनमें जो ये उड़ते फिरते हैं। यह हवा कहाँ से आती है? और जिस भगवान की सब बात करते हैं उसका घर भी तो कहते हैं न ऊपर ही कहीं है, मैं उस भगवान से भी मिलकर आती। हाँ, जानती हूँ कि इस बारे में विज्ञान अपने सिद्धांत देगा मगर मुझे सिद्धांत नहीं चाहिए। मुझे तो खुद इन्हें महसूस करना है, उड़ना है बहुत दूर तक। काश! कोई मुझे पंख दे दे ताकि मैं इन सब अहसासों को महसूस कर सकूँ। महसूस कर सकूँ जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल। अगर मैं उड़ पाती तो मैं फुर्र-फुर्र उड़कर कभी एक पेड़ की डाली पर बैठती और कभी दूसरी पर चिड़ियों की तरह और जब कभी मेरा मन उदास होता तो एक लंबी उड़ान पर निकल जाती। हवा के साथ बहती और आकाश में दूर दिखते चाँद के पास तक जाती। कोई भी मुझे रोक नहीं पाता। पंछी ही मेरे सबसे अच्छे मित्र होते जिनके साथ मैं दिन भर रहती, अपने सुख-दुःख कहती और उनके सुनती। काश! कि मैं उड़ पाती।

होती सीमाहीन क्षितिज से, इन पंखों की होड़ा-होड़ी

या तो क्षितिज मिलन बन जाता, या तनती साँसों की डोरी।