योजक चिन्ह यानि अंग्रेज़ी का हायफ़न(Hyphen)
यह सामान्यतः दो शब्दों को जोड़ता है, पर उनका स्वतंत्र अस्तित्व बना रहता है। यह शब्द संधि की तरह मिलकर एक शब्द नहीं बन जाते।
व्याकरण में वह चिह्न(-) जो शब्दों, पदों, उपवाक्यों आदि को जोड़ता है, योजक चिन्ह कहलाता है। उदाहरण के लिए, लाभ-हानि, लेनी-देनी आदि।
संज्ञा का दोहराव करते हुए भी योजक चिन्ह (-) का इस्तेमाल होता है। जैसे- घर-घर, जंगल-जंगल, कोना-कोना आदि।
जब दो शब्दों में पहला सार्थक और दूसरा निरर्थक हो, तब भी योजक चिन्ह(-) का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे- उल्टा-पुलटा, फल-वल, खाते-वाते, नाम-वाम आदि।
जब दो क्रियाएं एक साथ प्रयुक्त हों, तब भी योजक चिन्ह(-)का प्रयोग किया जाता है। जैसे- मारना-पीटना, दौड़ना-भागना, उठना-बैठना, बोलना-बताना आदि।
विपरीत अर्थ वाले शब्दों के बीच भी योजक चिन्ह(-) का प्रयोग किया जाता है। जैसे- सर्द-गर्म, काला-सफ़ेद, ठंडा-गर्म, लम्बा-छोटा आदि।
का / के / की का प्रयोग किए बगैर दो शब्दों में सम्बंध बताने के लिए और ऐसे शब्दों को जिन्हें सन्धि या समास द्वारा जोड़ा नहीं जा सकता ताकि शब्दों का स्वतंत्र अस्तित्व बना रहे, वहाँ पर भी योजक चिन्ह(-) का प्रयोग किया जाता है। जैसे-ताड़का-वध (ताड़का का वध), संधि नियम (संधि के नियम), भाषण-कला (भाषण की कला) आदि।
मूल धातु और प्रेरणार्थक क्रिया तथा दो प्रेरणार्थक क्रियाओं के बीच भी योजक चिन्ह(-) का प्रयोग किया जाता है। जैसे- चलना-चलाना, लड़ना-लड़ाना, लड़ाना-लड़वाना, कराना-करवाना आदि।
दो संख्यावाचक विशेषणों के बीच भी योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जैसे- दो-दो, दस-बीस, दो-चार आदि।
संख्यावाचक विशेषण जहाँ सा / सी / से का प्रयोग करना हो, वहाँ पर भी योजक चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जैसे- कम-से-कम, ज्यादा-से-ज्यादा आदि।