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‘नारी शक्ति’ को समर्पित

  • हर एक स्त्री प्रतिबद्ध है और उसका लक्ष्य पाना निश्चित है।
  • मैं सशक्त महिलाओं में विश्वास रखती हूं। यदि मुश्किलें आएं तो उनका सामना कर सकें। बिना किसी की मदद और सहारे के, क्योंकि वो स्त्री ही है जिसमें ब्रह्मांड को अपने ह्रदय में धारण करने की क्षमता होती है।
  • हम पंछी हैं, हम तितली हैं, हम पात हैं, हम फूल हैं, हम ही लहरें हैं, हम धाराएं हैं, हम गुलाब हैं, हम मधुकामिनी हैं, हम सीप हैं, हम मोती हैं, हम अग्नि हैं, पवन हैं, धरा हैं, गगन हैं, प्रकृति की प्रतिकृति हैं…… हम स्त्री हैं।
  • प्रकृति में होती तब्दीलियों को वैसा का वैसा ही महसूस करती है स्त्री। क्योंकि वह भी उसी तरह बदलती है, सृजन करती है। धरा पर जैसे प्रकृति जीवन को थामे रखती है, बिल्कुल वैसे ही स्त्री मानव जीवन को संभाले हुए है। अपने इस गुण को जानती है, लेकिन कहीं इसको कमज़ोरी मान कर अपने ही मन को दुःखी भी करती है। जो सर्जक है, वह सबल है – इस पर विश्वास पुख्ता करना है।
  • घर का आंगन है स्त्री। वार-त्यौहार की रौनक है स्त्री और घर बसता भी स्त्री से ही है। जिसे आधी दुनिया पहेली कहती है, पूरी दुनिया को जवाब है स्त्री। उलझी, अस्त-व्यस्त, बेहाल, बिखरी सी दुनिया का संवार है स्त्री। बहुरंगी दुनिया में रंग भरने वाली भी है स्त्री।
  • कभी-कभी ख़ुद की सुनना बहुत जरूरी हो जाता है और उस समय यह सोचना बिल्कुल जरूरी नहीं होता कि कोई और सुन रहा है या नहीं।
  • भोजन बनाना कोई रसायन शास्त्र नहीं है, यह एक कला है, जिसमें सही-सही नापतौल की जानकारी होना काफ़ी नहीं। अवयवों के मेल का अंदाज़ा, स्वाद की समझ, खाने वाले का ख्याल अहम होता है।
  • मजबूत स्त्री बनिए ताकि बेटी के लिए आदर्श स्थापित कर सकें कि उसे बड़े होकर कैसी स्त्री बनना है। ताकि बेटा यह जान सके कि जब वह बड़ा हो जाएगा तो उसे जीवनसाथी को किस सम्मान की नज़र से देखना है।