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किसी की ताकत बनेंगे या कमजोरी ?

किसी भी समूह में, एक मजबूत व्यक्ति पर हर व्यक्ति, अपनी लड़ाई लड़ने और मुद्दों को सुलझाने के लिए मदद मिलने के लिए निर्भर रहता है। 

कार्यभार संभालना और सुरक्षित रूप से किसी काम को अंजाम देना, इस व्यक्ति के व्यवहार में स्वाभाविक रूप से आता है, जो जरूरत पड़ने पर या कभी-कभी बिना पूछे भी; किसी न किसी का पक्ष लेने के लिए आगे आता है।

ऐसे परिवार के सदस्य या सहकर्मी की मौजूदगी दूसरों को सुरक्षा की भावना से प्रभावित करती है, इसका परिणाम यह होता है कि फिर निर्भर रहने वाला अपनी ताकत विकसित करने में असफल रहता है। 

इसका सबसे आम उदाहरण माता-पिता हैं, जो हर समय अपने बच्चों को सुरक्षा देने में लगे रहते हैं।

जब कल्पना बेटी को लेने के लिए पार्क में गई, तो वहाँ उसने देखा कि एक महिला अपने बेटे के लिए, दूसरे बच्चों पर चिल्ला रही थी। वे बच्चे उसके बेटे को चिढ़ाते थे। उन बच्चों ने तब तो कुछ नहीं कहा, परन्तु …

जैसी कि उम्मीद की जा रही थी, जैसे ही महिला मुड़ी, वे बच्चे फिर उस बच्चे को चिढ़ाने लगे। ऐसा तब तक चलता रहा, जब तक कि उस बच्चे ने स्वयं अपने लिए आवाज नहीं उठाई।

कहीं न कहीं, हम सभी अपने बच्चों के लिए ऐसा ही करने के  दोषी हैं।  ऐसे माता-पिता मिलने मुश्किल हैं, जिनके पास अपने बच्चे को, उसकी मदद करने से इंकार करने का और उसे मुसीबतों का सामना करने के लिए तैयार करने जितना बड़ा दिल है। 

हमारे पास, माता-पिता के रूप में हमेशा दो विकल्प मौजूद होते हैं। पहला यह कि हम आगे बढ़ कर अपने बच्चों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहें और दूसरा यह कि हम उन्हें उनकी लड़ाई स्वयं लड़ने दें ।

उन्हें इस निर्दयी संसार के बीच छोड़ देना ; निश्चित रूप से दो विकल्पों में से अधिक कठिन है, लेकिन बहुत जरूरी है।

अगर हम अपने बच्चों को मजबूत और स्वतंत्र होने के लिए प्रशिक्षित करना चाहते हैं, तो उन्हें इनके बीच में से गुजरना ही होगा।

वही हमारे परिवारों के अन्य सदस्यों के लिए भी होता है।  बेशक, मजबूत व्यक्ति हमेशा कदम रख सकता है और मदद कर सकता है, लेकिन किसी भी शख्स को मजबूत बनाने और उसे आत्मनिर्भर बनाने में मदद करने के लिए समय निकालना एक दयालु और अधिक उदार कार्य है।

जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं और हमारे माता-पिता बूढ़े होते हैं और उनके स्वास्थ्य में गिरावट आती है, तो हम अपने माता-पिता की मदद करते हैं और सभी चीज़ों के निर्णय लेते हैं।

लेकिन क्या हम समय पर और अपने ऊपर निर्भरता बढ़ाने के बजाय उन्हें मजबूत बनाने और उनके आत्मविश्वास को फिर से बनाने में मदद नहीं कर सकते ?

क्या यह उन्हें तब तक प्रोत्साहित करने के लिए अच्छा नहीं है, जब तक कि वे स्वयं को अपने आप में सम्पूर्ण और रोगों से लड़ने के लिए तैयार रहते हैं।

जबकि वे जानते हैं कि आप उनके लिए उपलब्ध हैं । इस तरह आप सह-निर्भरता के बजाय अंतर्निर्भरता विकसित करके उनके अंदर जीने का जोश कायम रख सकते हैं ।

कम सक्षम सहयोगियों का काम संभालने या दूसरे के दोषों की जिम्मेदारी लेने के लिए आगे बढ़ने के बजाय, कार्यालय में, लोगों को अपने काम के लिए और गलतियों को सुधारने के लिए प्रोत्साहित करना बेहतर होगा। 

इस तरह से हम उन्हें बेहतर व्यक्तित्व का मालिक बनाने और बेहतर पेशेवर बनने में मदद करते हैं।  आपसी निर्भरता हमेशा मजबूत और अधिक सार्थक संबंधों का पर्याय बनती है।

जो लोग दूसरों पर आश्रित होते हैं, वे अपने आत्मसम्मान की भावना खो देते हैं और चिड़चिड़े हो जाते हैं। 

दूसरे की मदद करने का मतलब यह नहीं हो सकता कि वे अपने कार्यों और जिम्मेदारियों को संभाल सकें, एक स्वतंत्र अस्तित्व का नेतृत्व करने और आत्मनिर्भर होने की उनकी क्षमता।  इसका मतलब है कि वे अपनी ताकत का इस्तेमाल करने में मदद करें ताकि वे अपना निर्माण कर सकें।

प्यार हमेशा दयालु नहीं होता है।  कभी-कभी, आपको उसे तैरने के तरीके सिखाने के लिए पानी में फेंकने की आवश्यकता होती है।

उनके आत्मनिर्भर होने तक पहुंचने के लिए, आपको किनारे पर खड़े रहना होगा और अपने प्रियजनों को कुछ संघर्ष करने देना होगा। 

ताकत का मतलब यह नहीं है कि आप कभी नहीं गिर नहीं सकते;  इसका मतलब सिर्फ इतना है कि आप खुद को फिर से उठा लेते हैं।  इसका मतलब यह नहीं है कि आप टूटते नहीं हैं; बल्कि मजबूत लोग बार-बार परिस्थिति के अनुरूप खुद को ढाल लेते हैं।

बेहतर यही है कि अपने प्रियजनों के पीछे की शक्ति बनने की बजाय, उन्हें सशक्त बनाने में मदद करें।

अपने प्रियजनों की ताकत बनने के बजाय, उन्हें मजबूत बनाने की कोशिश क्यों न करें?