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काव्यांश : हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी,


हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी,

हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी,

आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएँ सभी।

यद्यपि हमें इतिहास अपना प्राप्त पूरा है नहीं,

हम कौन थे, इस ज्ञान को, फिर भी अधूरा है कहें।

हम दूसरों के दुख को थे दुख अपना मानते;

हम मानते कैसे नहीं, जब थे सदा यह जानते-

“जो ईश कर्ता है हमारा दूसरों का है वही,

हैं कर्म भिन्न परंतु सब में तत्व-समता हो रही।”

बिकते गुलाम न थे कहाँ, हममें न ऐसी रीति थी,

सेवक-जनों पर भी हमारी नित्य रहती प्रीति थी।

वह नीति ऐसी थी कि चाहे हम कभी भूखे रहें,

पर बात क्या जीते हमारे जी कभी वे दुख सहें ।

आए नहीं थे स्वप्न में भी जो किसी के ध्यान में,

वे प्रश्न पहले हल हुए थे एक हिंदोस्तान में।

सिद्धांत मानव-जाति के जो विश्व में वितरित हुए,

बस, भारतीय तपोवनों में थे प्रथम निश्चित हुए।


काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :-


प्रश्न १. कवि किस समस्या पर विचार करने को कह रहा है और क्यों?

प्रश्न २. कवि ने किन भारतीय विचारधाराओं तथा भावनाओं को श्रेष्ठ बताया है?

प्रश्न ३. भारतीय संस्कृति की किस श्रेष्ठता को कवि ने उभारा है?